यक्ष और यक्षिणी का उल्लेख और उनसे संबंधित कहानियों (yakshini story in hindi) का कई ग्रंथो, शास्त्रों आदि में किया गया है जैसे महाभारत, रामायण। शास्त्रों में बताई गई yakshini story in hindi में बताया गया है कि हमारी पृथ्वी पर दानव, दैत्य, किन्नर, गन्धर्व, भूत प्रेत, यक्ष यक्षिणी, वानर, रीछ, डाकिनी शाकिनी, नाग, नागिन, नागकन्या जैसी कई जातियों और प्रजातियाँ हैं।
पौराणिक कथानुसार भोलेनाथ के दास और दासियों को यक्ष और यक्षिणी कहते हैं। इनमें देवी देवताओं जैसी कई दैविक शक्तियाँ होती हैं लेकिन बहुत सारे लोग यक्ष और यक्षिणी को भूत और भूतनी मानते हैं। उनकी ये सोच गलत है।
Yakshini story in hindi अनुसार यक्ष और यक्षिणी में भूत और भूतनी जैसे नकारात्मक ऊर्जा नही होती है बल्कि उनमें सकारात्मक ऊर्जा विद्यमान होता है। ये लोगो की मदद के लिए हमेशा ही तत्पर रहे हैं। ऐसा माना जाता है व्यक्ति दृढ़ता से इनकी साधना, तपस्या करके उन्हें प्रसन्न कर सकते हैं और उनसे मनचाहा वरदान मांग सकते हैं। कई yakshini story in hindi के अनुसार ऐसा भी माना जाता है कि सम्पूर्ण देवी देवताओं की दैविक शक्तियों के बाद इनकी शक्तियों को उच्चतर माना जाता है।
यक्षिणी क्या होती है (Yakshini Story In Hindi)
शास्त्रों में लिखित yakshini story in hindi अनुसार जिस तरह देव देवता मुख्य रूप से 33 प्रकार के होते हैं उसी तरह प्रमुख रूप से यक्षिणी 64 प्रकार की होती है। इनमें से 8 को प्रमुख माना गया है। ऐसा माना जाता है इन 8 यक्षिणियों की साधना करने से व्यक्ति अपनी सभी मनोकामनाएँ पूर्ण कर सकता है।
इन सभी आठो यक्षिणियों में से मनोहारी और सुरसुन्दरी यक्षिणी प्रमुख हैं। इनके अलावा कामेश्वरी यक्षिणी, कनकावती यक्षिणी, पद्मिनी यक्षिणी, रतिप्रिया यक्षिणी, अनुरागिनी यक्षिणी और नटी यक्षिणी हैं जिनकी साधक अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए साधना करते हैं।
Yakshini story in hindi अनुसार यक्षिणी वो दिव्य प्राणी हैं जो इस सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के अलग अलग क्षेत्रो में रहते हैं। इन्हें उपदेव भी कहा जाता है। यक्ष और यक्षिणी के स्वामी कुबेरदेव हैं।
Yakshini story in hindi से जुडी जानकारियों की रिसर्च में व्यस्त कई विशेषज्ञ लोग मानते हैं कि हर यक्षिणी को प्रसन्न करने के लिए एक विशिष्ट मन्त्र होता है जिसकी साधना करने करने से और सिद्धि पाने से व्यक्ति को मन चाहा वरदान और सुख, ऐश्वर्य, सौभाग्य, वैभव, सफलता, संतान सुख, पराक्रम, रत्न और अनेको उपलब्धियां प्राप्त होती हैं।
Yakshini in hindi के अनुसार ऐसा भी माना जाता है इनको प्रसन्न करने से शत्रु का भय नही रहता है और व्यक्ति हर प्रकार का सुख प्राप्त करता है। इनकी साधना के लिए जरुरी है कि व्यक्ति इन मंत्रो का उच्चारण विधि विधान से और सही तरीके से करे ताकि उसकी समस्त परेशानियाँ दूर हो जाए। इस प्रकार की साधना और तपस्या के लिए गुरु का होना जरुरी है। अनुभवी गुरु के बिना किसी भी व्यक्ति का यक्षिणी को प्रसन्न करना उचित नही होता है।
महाभारत और रामायण में वर्णित yakshini story in hindi के अलावा बौद्ध और जैन धर्म में भी यक्षिणी का उल्लेख है। श्रीराम के रामायण काल में एक शक्तिशाली यक्षिणी थी जिसका नाम था ताड़का और उस राक्षसी का वध श्री हरी विष्णु के अवतार से ही संभव था। बाद में तड़का यक्षिणी का वध श्रीराम ने किया।
यक्षिणी की कहानी (Yakshini Story in Hindi)
पहली कहानी
यक्षिणी के अस्तित्व और उनकी उत्पत्ति के विषय में धर्म ग्रंथो में बताया गया है। उनके बारे में महाग्रंथ रामायण में बताया गया है। रामायण के उत्तरकांड में वर्णित हैं कि किस तरह ब्रह्मा जी ने इस सृष्टि में जल की रक्षा हेतु कई जंतुओं को बनाया था। उन जन्तुओ से ब्रह्म देव ने कहा था कि तुम सब मनुष्यों की रक्षा यत्न पूर्वक करोगे। उनकी इस आज्ञा के जवाब में कुछ ने कहा रक्षाम और कुछ ने कहा यक्षाम। जिन्होंने रक्षाम कहा वो राक्षस बने और जिन्हें यक्षाम कहा और यक्ष और यक्षिणी बने।
कालान्तर में ऋषी विश्रवा ने दो विवाह किए। उनकी पहली पत्नी थी कैकसी जिन्होंने लंकापति रावण, उनके भाई विभीषण और कुभकरण जन्म दिया। दूसरी पत्नी का नाम था इलविदा जिन्होंने यक्ष और यक्षिणी के देव कुबेर को जन्म दिया।
Yakshini story in hindi अनुसार राक्षस मायावी शक्तियों में माहिर थे वही यक्षो के पास मायावी और जादुई दोनों शक्तियां थी। दोनों ही शक्तिशाली थे लेकिन जहाँ राक्षस सिर्फ पाताल लोक या मृत्यु लोक में रह सकते थे वहां यक्ष और यक्षिणी स्वर्ग तक जा सकते थे। स्वर्ग में कई यक्ष और यक्षिणी निवास भी करते हैं। इसी कारण कई ग्रंथो में देवी देवताओं के साथ साथ उनका भी वर्णन किया गया है।
ब्रह्म देव जी से यक्षो ने ये आशीर्वाद माँगा था कि वो उन्हें पूजन शक्ति का वरदान दें ताकि वो घोर तपस्या और साधना करके शक्तियां और ऊर्जा प्राप्त कर सके। उनके इसी वरदान स्वरुप यक्षिनियो ने कई तांत्रिक विद्याएँ प्राप्त की। इसी कारण कई साधक उनकी पूजा करते हैं ताकि वो भी उनसे शक्तियां पा सके।
दूसरी कहानी
यक्षिणी की उत्पति से सबंधित एक और पौराणिक कथा (yakshini story in hindi )प्रचलित है। इस yakshini story in hindi कथा के अनुसार एक समय भगवान शिव हिमालय पर्वत पर तपस्या में लीन थे। माता पार्वती अपनी सखियों समेत उनकी सेवा में लगी हुई थी। वो उनकी सेवा उन्हें पति के रूप में प्राप्त करने के उद्देश्य से कर रही थी।
उसी समय कामदेव वहां आ गए। कामदेव वहां भोलेनाथ की तपस्या को भंग करने आए थे। वो ये कार्य देवराज इंद्र और अन्य देवो के कहने पर कर रहे थे। माता सती के वियोग में भोलेनाथ गहन समाधि में चले गए थे जहाँ से उन्हें बाहर निकालने और उन्हें वैराग्य से निकालने के लिए सभी देवताओं ने कामदेव को वहां भेजा था। उन्होंने ऐसा इसलिए भी किया क्योंकि तारकासुर का वध भगवान् शिव और माता पार्वती के पुत्र हाथों होना निश्चित था और उन्हें ये ज्ञात था कि माता पार्वती ही माता सती हैं और उनका भगवान शिव संग विवाह निश्चित था।
Yakshini story in hindi अनुसार जब कामदेव ने भगवान शिव की तपस्या भंग करने के लिए बाण चलाया, तब माता पार्वती को कामदेव के इस कार्य का पता चल गया था, उन्हें क्रोध भी आया लेकिन लेकिन वो जानती थी कि उनका बाण चलाने का मकसद और भावना सही थी इसी कारण उन्होंने कामदेव को मन से माफ़ कर दिया था।
माता ने उन्हें क्षमा तो कर दिया था लेकिन बाण के कारण उनके माथे पर पसीना आ गया। माता ने उन बूंदों को अपने हाथ से पोछा और जमीन पर फेक दिया।
सभी पसीने की बूंदे इधर उधर पृथ्वी और ब्रह्मांड में अलग अलग स्थानों पर गिरी और जहाँ जहाँ वो बूंदे गिरी वहां वहां यक्षिणी उत्पन्न हुई।
चूँकि वो माता के पसीने से उत्पन्न हुई थी उनमें अपार शक्तियां थी, साथ ही वो कामातुर भी थी। कामातुर होने के कारण वो ऋषिओ और व्यक्तियों को छूने लगी। उनके इस कार्य से ऋषि मुनि क्रोधित हुए और उन्हें श्राप दिया कि तूम साधना लायक तब बनोगी जब साधक तुमसे पूछकर तुम्हारी साधना और तपस्या करेगे। इसी श्राप के बाद से उनकी साधना का विधान इस धरती पर शुरू हुआ।
भगवान भोलेशंकर पर कामदेव द्वारा चलाए बाण और yakshini story in hindi का उल्लेख हिन्दू धर्म ग्रन्थ शिव पुराण में भी किया गया है। कामदेव के इस कृत्य से भगवान् शिव बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने क्रोध में आकर अपने तीसरे नेत्र को खोलकर उसको भस्म कर दिया था।
यक्षिणी साधना (Yakshini Sadhana)
Yakshini story in Hindi अनुसार यक्षिणी साधना करना और उन्हें प्रसन्न करना बहुत कठिन हैं। उनके पास कई अलौकिक शक्तियों हैं और वो व्यक्ति की हर मनोकामना को पूर्ण करने में सक्षम होती हैं। वो सिर्फ स्वर्ग से नही अपितु पाताल लोक और पृथ्वी से भी जुड़ी हुई हैं। यक्षिणी स्वयं चाहती हैं कि कोई साधक उनको उस श्राप से मुक्ति दिलाए। वो चाहती हैं कि कोई साधक उन्हें माँ के रूप में, बहन के रूप में, प्रेमिका के रूप में या पत्नी के रूप में उन्हें उस श्राप से मुक्ति दिलाए। जो साधक सच्चा होगा और जो इस श्राप को नष्ट कर देगा वो उनकी हर इच्छा पूरी करेंगी, ऐसा कई yakshini story in Hindi में बताया गया है।
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यक्षिणी साधना के खतरे (Yakshini Sadhana Mantra)
इस साधना से पहले चान्द्रायण व्रत किया जाता है। ये व्रत बहुत कठिन होता है। इसमें व्यक्ति को दिन के हिसाब से खाने की कौर लेनी होती है। प्रतिपदा के समय एक कौर, दूज के दिन दो कौर। ऐसे ही एक एक कौर का पूर्णिमा तक बढ़ाना है और फिर पूर्णिमा से फिर से एक एक कौर अमास्वाया तक कम करना है। इस एक कौर के अलावा व्यक्ति कुछ और नही खा सकता है। इस कठोर तप से व्यक्ति के पाप सिर्फ इस जन्म के नही बल्कि कई जन्मो के नष्ट हो जाते हैं।
इस कठिन साधना के बाद व्यक्ति 16 रुद्राभिषेक करते हैं और फिर 51 हज़ार बार महामृत्युजय मन्त्र का जान करते हैं और फिर 51 हज़ार बार कुबेर मन्त्र का जाप करते हैं। इसके बाद भगवान शिव से यक्षिणी साधना की आज्ञा ली जाती है।
Yakshini story in hindi अनुसार ये साधना बहुत शक्तिशाली होती है। यदि साधक श्रेष्ठ कर्म करता है तो भगवान् शिव उसके स्वप्न में आतें हैं। स्वप्न शुभ हैं या अशुभ ये ध्यान में रखते हुई साधक को प्रार्थना करनी चाहिए। ऐसा माना जाता है यदि सपने में अशुभ संकेत मिल रहे हैं तो व्यक्ति को यक्षिणी साधना नही करनी चाहिए। यदि व्यक्ति अशुभ संकेत पाने के बाद भी ये साधना करता है तो उसकी पूजा सफल नही होगी और हो सकता है उसे उस पूजा के बाद नुक्सान ही नुक्सान हो।
इस साधना में कई नियमो का पालन किया जाता है और यंत्रो को कई प्रयोगों द्वारा प्राप्त करके उसकी प्राण प्रतिष्ठा की जाती है। साधना के लिए जरुरी सभी जरुरी वस्तुओ का प्रयोग शुद्धता से साधना और तपस्या के लिए किया जाता है।
आखरी में पूर्णिमा के दिन साधक पूरी रात जप और तप करते हैं। किसी आलसी व्यक्ति के बस में ये साधना करना नही है, इसलिए आलसी लोग इस साधन को करने से बचे। ये साधना किसी तलवार पर चलने जितनी कठिन होती है। साधक द्वारा की गई जरा सी चुक उसकी पूजा को विफल कर सकती है।
यक्षिणी साधना को करने वक्त कई सावधानियां बरतनी जरूरी है जैसे
- यक्षिणी की साधना एकाग्रचित होकर करे। यक्षिणी की कोई मूर्ति नही है। साधक अपनी कल्पना से उन्हें रूप दे सकता है। आप जिस तरह के उद्देश्य से साधना करने वाले हैं उसी रूप में उनका आह्वान करे। ये रूप माता, पत्नी, पुत्री, प्रेमिका या बहन का हो सकता है।
- जब आप यक्षिणी साधना कर रहे हैं सात्विक भोजन करे और मांसरहित भोजन से दूर रहे।
- सुबह स्नान करे और मृग चर्म पर बैठे। किसी भी चीज को स्पर्श न करे।
- अब एकांत में बैठे और यक्षिणी का जप तब तक करे जब तक वो प्रकट न हो जाए। आप जप मध्य रात्री को एकांत जगह पर कर सकते हैं।
- इस साधना को करते समय यदि साधक को कुछ अलग अनुभूति हो तो अपने तक ही रहनी चाहिए, किसी से भी इस बारे में बात नही करनी चाहिए।
- पूजा करने के लिए सभी जरुरी चीजे एक जगह रख लें और साथ ही पूजा स्थल पर भोजन,जल और रोज में जरुरत पढने वाले सभी चीजे रखे ताकि इन चीजो के लिए आपको अपनी साधना से उठकर न जाना पढ़े।
- यदि साधक की इच्छा शक्ति प्रबल होती जाएगी तो मन्त्र का प्रभाव भी बढ़ता जाएगा।
- जब भी साधना शुरू करे अपने परिवार को इसके बारे में बता दें ताकि उनकी तरफ से आपकी पूजा में कोई विघ्न न आए। फ़ोन और मेहमान भी नही आने चाहिए।
- किसी योग पंडित से पूछकर नियमो का पालन करते हुए पूजा करनी चाहिए।
- यक्षिणी साधना में सफतला तभी मिल सकती है जब मन्त्र जाप सही तरीके से, निमयो अनुसार और कुछ जरूरी गोपनिय तथ्यों का पालन करे। यदि व्यक्ति किसी किताब या वेब से जानकारी लेकर ये साधना करते हैं तो उनको सफलता नही मिलेगी। ये सफल रूप से किसी अनुभवी गुरु की मदद से पूरी होगी।
- इस साधना से पहले सुरक्षा कवच और गुरु का मार्गदर्शन जरुर ले क्योकि बिना सुरक्षा कवच ये साधना करना कष्टदायी और डरावना हो सकता है। इस साधना में बोले जाने मंत्रो के प्रभाव से साधक के सामने कई डरावनी आवाजे और दृश्य आ सकते हैं। कई बार इत्र की खुशबु के चलते जिन्नात आकर्षित हो जाते हैं और वो साधक को नुक्सान पहुचा देते हैं।
अत: सम्पूर्ण जानकारी लेकर और अनुभवी गुरुजन के मार्गदर्शन में ही यक्षिणी साधना करनी चाहिए।
यक्षिणी मंत्र (Yakshini Mantra)
प्रमुख रूप से आठ यक्षिणियाँ होती हैं जिनके अलग अलग मन्त्र हैं।
- अनुरागिणी यक्षिणी मन्त्र
ॐ हीं अनुरागिणी आगच्छ स्वाहा।।
- सुरसुन्दरी यक्षिणी मंत्र
॥ ॐ ह्रीं आगच्छ सुर सुन्दरि स्वाहा ॥
- मनोहारी यक्षिणी मन्त्र
ॐ ह्रीं आगच्छ मनोहरे स्वाहा ।
- कामेश्वरी यक्षिणी मन्त्र
ॐ ह्रीं आगच्छ कामेश्वरि स्वाहा ।
- कनकावती यक्षिणी मन्त्र
ॐ कनकावति मैथुनप्रिये स्वाहा ।
- पद्मिनी यक्षिणी मन्त्र
ॐ ह्रीं आगच्छ पदमिनि वल्लभे स्वाहा ।
- रतिप्रिया यक्षिणी मन्त्र
ॐ ह्रीं आगच्छ-आगच्छ रतिप्रिये
- अनुरागिनी यक्षिणी मन्त्र
ॐ ह्रीं आगच्छानुरागिणी मैथुनप्रिये स्वाहा ।
- नटी यक्षिणी मन्त्र
ॐ ह्री क्ली नटी यक्षिणी कुरु कुरु स्वाहा।
कौन सी यक्षिणी की साधना किस उद्देश के लिए की जाती है?
- दिव्य रसायन प्राप्त करने के लिए चण्डवेगा यक्षिणी, लक्ष्मी यक्षिणी और विशाला यक्षिणी की साधना की जाती है।
- ऐश्वर्य पाने के लिए काल कर्णिका यक्षिणी की साधना की जाती है।
- भोग और कामना के लिए शोभना यक्षिणी की साधना की जाती है।
- धरती में गढ़ा धन पाने के लिए हंसी यक्षिणी की साधना की जाती है।
- धन धान्य के लिए रतिप्रिया यक्षिणी की साधना की जाती है।
- धन और दीर्घायु के लिए सुरसुन्दरी यक्षिणी की साधना की जाती है।
- स्वर्ण मुद्रा पाने के लिए अनुरागिणी यक्षिणी की साधना की जाती है।
- उत्तम कोटि का रत्न पाने के लिए जलवासिनी यक्षिणी की साधना की जाती है।
- सभी प्रकार के रत्न पाने के लिए महाभया यक्षिणी की साधना की जाती है।
- अमृत प्राप्त करने के लिए चन्द्रिका यक्षिणी की साधना की जाती है।
- मृत में प्राण डालने के लिए रक्तकम्बला यक्षिणी की साधना की जाती है।
- भूत वर्तमान और भविष्य जानने के लिए विधुज्जिव्हा यक्षिणी की साधना की जाती है।
- काल ज्ञान देने के लिए कर्णपिशाचिनी यक्षिणी की साधना की जाती है।
- मनवांछित फल के लिए विचित्रा यक्षिणी की साधना की जाती है।
- दिव्य भोग और रत्न प्राप्त करने के लिए पघिनी यक्षिणी की साधना की जाती है।
हर कोई भोग विलास और अपार धन ऐश्वर्य शोर्ट कट तरीके से पाना चाहता है जिसके लिए वो गलत राह चुन लेता है और गलत तरीके से यक्षिणी साधना में लग जाता है जिसका फायदा होने की जगह नुक्सान हो जाता है। यक्षिणी साधना बिना मार्गदर्शन के करना मुर्खता है क्योकि इसमें होने वाली गलतियाँ नकरात्मक शक्तियां आकर्षित कर सकती है।
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