आयुर्वेद में ऋतुचर्या (Ritucharya in Ayurveda) को बहुत महत्वपूर्ण समझा जाता है। भारतीय सभ्यता में उदित आयुर्वेद के अनुसार ऋतुचर्या का मुख्य प्रयोजन मनुष्य के शरीर को रोगों से दूर रखकर स्वस्थ रखना है। हमारा शरीर पाँच तत्वों (भूमि, आकाश, अग्नि, वायु, और जल) से बना है और इसमें सात धातुएँ शामिल हैं। शरीर को स्वस्थ रखने के लिए इन सभी तत्वों और धातुओं का संतुलन आवश्यक होता है।
इन सभी की एक-एक अग्नियां हैं और एक अतिरिक्त अग्नि है जिसे जठराग्नि बोलते हैं, जो भोजन पाचन से संबंधित है। ऋतुओं में बदलाव के साथ-साथ इन अग्नियों के तेज और शांत होने की गति में भी बदलाव आता रहता है और अगर हम इनको संतुलित रखने के लिए सही भोजन नहीं करेंगे तो ये दोषों और बीमारियां का रूप ले लेंगी। तो इसलिए यह बहुत ज़रूरी है कि हम ऋतु के अनुसार अपने खान-पान को बदलें।
आइए जानें की आखिर में ऋतुचर्या क्या है (Ritucharya in Ayurveda)।
ऋतुचर्या क्या है? Ritucharya In Ayurveda
ऋतुचर्या आयुर्वेद (Ritucharya in Ayurveda) के अनुसार एक विधान है। यह दो शब्दों से मिलकर बना है: ऋतु अर्थात मौसम और चर्या अर्थात आहार या अनुशासन। ऋतुओं के अनुसार आहार-विहार या खान-पान का पालन करना ही ऋतुचर्या कहलाता है। आयुर्वेद के अनुसार विभिन्न ऋतुओं में अलग-अलग दोषों का प्रकोप होता है जिसका सीधा असर हमारी सेहत पर पड़ता है। प्रत्येक वर्ष को दो भागों में बांटा गया है; उत्तरायण (आदान काल) और दक्षिणायन (विसर्ग काल) और हर काल में तीन-तीन ऋतुएँ हैं।
14 जनवरी से 14 जुलाई तक का समय उत्तरायण कहलाता है और इसमें तीन ऋतुएँ आती हैं शिशिर, बसंत, और ग्रीष्म। उसी तरह से 14 जुलाई से 14 जनवरी तक का समय दक्षिणायन कहलाता है और इसमें तीन ऋतुएँ आती हैं; वर्षा, शरद, और हेमंत। इस तरह से हर वर्ष में कुल छः ऋतुएँ आती हैं। मुख्य रूप से ये ऋतुएँ सूर्य की गति और चाल पर निर्भर करती हैं।
अलग-अलग ऋतुओं में अलग-अलग बीमारियों का प्रभाव मानव शरीर पर होने लगता है। लेकिन आयुर्वेद के अनुसार ऋतुओं के अनुसार आहार और विहार में परिवर्तन लाकर बीमारियों को होने से रोका जा सकता है। तो आइये अब जानते हैं कि किस ऋतु में किस प्रकार का भोजन करना उचित माना जाता है।
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कैसा होना चाहिए ऋतु के अनुसार भोजन (Ritucharya In Ayurveda)
आयुर्वेद में ऋतुओं (Ritucharya in Ayurveda) को भी महत्व दिया गया है। अब बात करते हैं की विभिन्न ऋतुओं में अपने शरीर को दोषों से मुक्त रखकर स्वस्थ रखने के लिए किस तरह का भोजन अर्थात भोजन करना चाहिए।
1) शिशिर ऋतुचर्या (Winter Season)
शिशिर ऋतु हिन्दू पंचांग के अनुसार माघ से फाल्गुन महीने तक होती है, तो वहीं अंग्रेज़ी कैलेंडर के हिसाब से जनवरी, फरवरी, और मार्च महीने को शिशिर ऋतु के अंतर्गत माना जाता है। इस ऋतु (Ritucharya in Ayurveda) में जठराग्नि के तेज़ होने की वजह से पाचन शक्ति बढ़ जाती है। इसीलिए गरिष्ठ भोजन और गरम जलपान करना शिशिर ऋतु में फायदेमंद होता है और शीतल भोजन और पेय पदार्थों का सेवन नुकसानदेह माना जाता है।
2) वसंत ऋतुचर्या (Spring Season)
अगर हम वसंत ऋतु की बात करें तो हिन्दू पंचांग में ये चैत्र से वैशाख महीने तक को और इंग्लिश कैलेंडर में मार्च, अप्रैल, और मई महीनों को बोलते हैं। यह शीत और ग्रीष्म ऋतु का संधि समय होता है। इस समय न ही अधिक ठण्ड पड़ती है और न गर्मी।
शीत ऋतु में जमा हुआ कफ इस ऋतु में सूर्य की किरणों की वजह से पिघलने लगता है और जठराग्नि भी शांत हो जाती है। मौसम में परिवर्तन के साथ लोगों के स्वास्थ्य में भी गहरा असर होने लगता है। इस ऋतु में बीमारियों को दूर रखने के लिए कफ में वृद्धि करने वाला भोजन करने की सलाह दी जाती है। आपको लवण, मधुर, और अम्ल रस से युक्त खाना खाना चाहिए।
3) ग्रीष्म ऋतुचर्या (Summer Season)
हिन्दू पंचांग में ज्येष्ठ से आषाढ़ और अंग्रेजी कैलेंडर के हिसाब से मई, जून और जुलाई के महीनों को ग्रीष्म ऋतु के अंतर्गत माना जाता है। इस ऋतु में सूर्य की किरणें इतनी तेज़ और चुभने वाली हो जाती हैं कि वो पृथ्वी से सारा सौम्य और शीतलीय अंश सोख लेती हैं। हर जगह टेम्परचर ज़्यादा होता है और वातावरण रुखा सूखा सा रहता है।
इस समय मानव शरीर में पित्त दोष हावी होने लगता है जिससे सर दर्द, चक्कर, रक्तचाप, पित्त, जलन, ज्वर जैसी बीमारियां बढ़ने लगती हैं। आयुर्वेद के अनुसार इस ऋतु में पित्त दोष से स्वास्थ्य के बचाव के लिए चावल, घी-दूध, शीतल पेय जैसे पदार्थों का सेवन करना लाभदायक होता है।
4) वर्षा ऋतुचर्या (Rainy Season)
विसर्ग काल की शुरुआत के साथ वर्ष ऋतु शुरू होती है। इस ऋतु में श्रावण से भाद्रपद का काल या जुलाई, अगस्त, और सितम्बर के महीने आते हैं। वर्षा ऋतु में धरती में पानी पड़ने के कारण जठराग्नि शांत होकर धीरे-धीरे काम हो जाती है। वातावरण में नमी होने का असर स्वास्थ्य पर भी पड़ता है और पाचन शक्ति कमज़ोर हो जाती है।
इस समय वातावरण में बैक्टीरिया बढ़ जाते हैं और हाई बी पी, फुंसियां, मलेरिया, दस्त, जुकाम, दाद, खुजली, और अन्य कई बीमारियाँ लोगों को होने लगती हैं। इसलिए बारिश के मौसम में ऐसिड और नामक वाला भोजन करने एवं पानी को उबाल कर पीने की सलाह दी जाती है।
5) शरद ऋतुचर्या (Autumn Season)
दोस्तों शरद ऋतु की अगर बात करें तो यह सितम्बर, अक्टूबर, और नवंबर के महीनों में होती है और हिन्दू पंचांग के अनुसार यह अश्विन से कार्तिक मास के मध्य का समय होता है। इस ऋतु में सूर्य फिर से अपने तेज़ के साथ चमकने लगता है। वर्षा ऋतु में इकट्ठा हुआ पित्त दोष सूर्य की किरणों के प्रभाव से काम हो जाता है एवं रक्त दूषित हो जाता है।
इसके फलस्वरूप पित्त और रक्त रोगों जैसे गण्डमाला, त्वचा पर चकत्ते, फोड़े-फुंसियां, बुखार, आदि की अधिकता हो जाती है। इसीलिए इस समय पित्त को शांत करने वाले खाद्य पदार्थों का सेवन करने की सलाह दी जाती है। अतः तिक्त रस वाले, शीतल, सुपाच्य, हलके, और मीठे भोजन और घी इत्यादि का सेवन इस समय उचित माना जाता है।
6) हेमंत ऋतुचर्या (Pre Winter Season)
भारतीय पंचांग के हिसाब से हेमंत ऋतु की शुरुआत मार्गशीर्ष मास से होकर यह पौष मास तक चलती है, तो वहीं इंग्लिश कैलेंडर के अनुसार नवंबर, दिसंबर, और जनवरी इस ऋतु के अंतर्गत आते हैं। इस ऋतु में जठराग्नि के बहुत तेज हो जाने की वजह से पित्त और वात का असर कम हो जाता है और पाचन शक्ति अच्छी हो जाती है। इस मौसम में अग्नि के तेज होने पर अगर शरीर को जरूरी खाना न मिले तो वह प्रथम धातु रस को जला देती है। इसलिए हेमंत ऋतु में फैट वाले खाद्य पदार्थों जैसे दूध दही युक्त भोजन एवं घी तेल वाले भोजन करने की सलाह दी जाती है।
ऋतुचर्या के अनुसार भोजन (Ritucharya Chart)
ऋतुचर्या (Ritucharya in Ayurveda) | उपयुक्त आहार |
शिशिर | मौसमी फल, मिश्री, चीनी, अखरोट, पिस्ता, बादाम, नए चावल से बना भात, अधिक मीठा, उड़द, तिल, गन्ने का रस, गुड़, उष्ण जल, रबड़ी, मलाई, दही, शुद्ध घी, मक्खन, तेल, दलीया, आंवले का मुरब्बा, मेवों से बने पदार्थ, छान, मूंग, कॉर्नफ़्लेक्स, मेथी, सोंठ, बथुआ, पालक, मटर, सेम, गाजर, पके लाल टमाटर, जिमीकंद, गोभी, परवल आदि। |
वसंत | कड़वे रस वाले द्रव्य, बैंगन, नीम, चन्दन का जल, विजयसार, अदरक का रस, मुलेठी, काली मिर्च, तुलसी, मुनक्का, अरिष्ट, आसव, फलों का रस, खिचड़ी, खांड, दलीय, मूंग की दाल, शहद, पुराने जौ, गेहूँ , मक्खन लगी रोटी, भीगा व अंकुरित चना, राई, नीबू, खास का जल, धान की खील, आंवला, बहेड़ा, हरड़, पीपल, सोंठ, जिमीकंद क कच्ची मूली, केले के फूल, पालक, लहसुन, करेला, खजूर, मलाई, रबड़ी, आदि। |
ग्रीष्म | नए मिट्टी के बर्तन में पानी, नारियल, द्राक्षा, रात्रि में उबला हुआ शर्करा दूध, सुगन्धित शीतल पेय पदार्थ, शीतल जल, चावल, दूध, घी, सत्तू, जो, द्रव और अन्न पान, मधुर रस, बादाम, अंजीर, चिरोंजी, मुनक्का, किशमिश, आंवले का मुरब्बा, अनार, फालसा, शहतूत, हरी पतली ककड़ी, अंगूर, संतरा, मीठा आम, मीठा ख़रबूज़ा, तरबूज, मसूर की दाल आदि। |
वर्षा | उष्ण जल, हल्दी और सोंठ के चूर्ण वाला दूध, तिल तेल, सरसों का तेल, पिप्पली, सौंफ, काली मिर्च, मेथी, मसूर दाल, हरे चने, शाली चावल, गेहूँ, पुराने जो, शहद, नमकीन व् खट्टे पदार्थ आदि। |
शरद | आंवला और शक्कर, कमल गट्टा, मुनक्का, सिंघाड़ा, अनार, सेम, सोया, पालक, मूली, फूलगोभी, तुरई, लौकी, बथुआ, चौलाई, श्रीखंड, मलाई, घी, मक्खन, दही, उबला दूध, जो, गेहूँ, मूँग, शाली चावल, शर्करा और हंसोदक जल, मुनक्का, परवल, खोया, साथी, मधुर और कुशैले द्रव्य। |
हेमंत | अखरोट, पिस्ता, बादाम, मौसमी फल, शहद, मिठाई, मिश्री, चीनी, नए चावल का भात, खजूर, उरद, तिल, गन्ने का रस, गुड़, रबड़ी, मलाई, दही, घी, चिकनाई युक्त भजन इत्यादि। |
ऋतुचर्या का महत्व (Ritucharya in Ayurveda)
ऋतुचर्या (Ritucharya in Ayurveda) का भारतीय परंपरा में ऊंचा स्थान है। ऋतु के अनुसार खान-पान में बदलाव लाने से हम स्वस्थ जीवनशैली की तरफ अपने कदम बढ़ाते हैं। यह स्वस्थ समाज की परिकल्पना को पूरी करने का एक अद्भुत प्रयास है। भारतीय आयुर्वेद द्वारा जनित ऋतुचर्या (Ritucharya in Ayurveda) का पालन करके हम अपनी विरासत को ज़िंदा रख सकते हैं।
हमें यह प्रयास करना चाहिए कि ना सिर्फ हम बल्कि आगे आने पीढ़ियां भी इसके महत्व को समझे और इसका पालन करें।
आशा है कि हमारे माध्यम से आप ऋतुचर्या (Ritucharya in Ayurveda) और उसके महत्व को समझने में सफल हुए होंगे। इसी तरह से विविध जानकारियों के लिए हमसे जुड़े रहें।
Frequently Asked Questions
Question 1: ऋतुचर्या क्या है (6 ritucharya kya hai)?
आयुर्वेद में बताई गई चार ऋतुचर्या इस प्रकार हैं – शरद, वसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शिशिर, और हेमंत ।
Question 2: सरल शब्दों में ऋतुचर्या का अर्थ क्या है?
ऋतुचर्या दो शब्दों ऋतु और चर्या से मिलकर बना है, जहाँ ऋतु का अर्थ मौसम है और चर्या से तात्पर्य खान-पान या रहन-सहन से है। इस प्रकार ऋतुचर्या का अर्थ है – मौसम के हिसाब से खान-पान और रहन-सहन में बद लाव।
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