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खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी – रानी लक्ष्मीबाई की जीवनी

Rani Laxmi Bai In Hindi

भारत एक ऐसा देश है जहाँ कई वीरों और वीरांगनाओं ने जन्म लिया। हमारा देश शिवाजी, भगत सिंह जैसे वीरों को पाकर धन्य हुआ वही रानी लक्ष्मीबाई जैसी वीरांगना को पाकर हमारा देश गौरान्वित हुआ। रानी लक्ष्मीबाई अंग्रेजों के  साथ युद्ध करते करते वीरगति को प्राप्त हुई थी। रानी लक्ष्मीबाई का जीवन परिचय हिंदी में (rani laxmi bai in hindi) आज भी लोगों को प्रेरित करता है।

रानी लक्ष्मीबाई का जीवन परिचय हिंदी में (Rani Laxmi Bai In Hindi)

Rani Laxmi Bai In Hindi - rani lakshmi bai history

देश की आज़ादी में महिलाओं ने भी पुरुषों की तरह अपना सम्पूर्ण जीवन दे दिया। रानी लक्ष्मीबाई भी उनमें से एक थी जिन्हें अंग्रेजों के सामने झुकना कतई मंज़ूर नहीं था। उनमें इतना साहस था कि वो ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ और देश की आज़ादी के लिए बिना डरे युद्ध मैदान में कूद गई। रानी लक्ष्मीबाई की कहानी (rani laxmi bai in hindi) पढ़कर आज भी भारतवासियों में इतनी हिम्मत और जोश आ जाता है कि वो बिना डरे मुसीबत से लड़ने को तैयार हो जाते हैं।

झांसी की रानी का इतिहास (rani laxmi bai in hindi) पढ़कर आज भी कई लोग अपनी बेटियों को साहसी बनाने के लिए वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई की मिसाल देते हैं। Rani laxmi bai in hindi गाथा आज भी कई समारोह में नाट्य के रूप में लोगों के सामने लाई जाती है।

 

रानी लक्ष्मीबाई का जन्म कब हुआ था

रानी लक्ष्मीबाई जैसी शेर दिल वीरांगना का जन्म एक महाराष्ट्रीयन  ब्राह्मण परिवार में  19 नवंबर 1835 को काशी में हुआ। काशी को आज वाराणसी, जो एक भक्तिमय भूमि है, के नाम से जाना जाता है।

उनके पिता का नाम मोरोपंत  ताम्बे था जो एक न्यायालय, बिठुर में पेशवा थे। वो अपने पिता के काम से बहुत प्रभावित थी और शायद इसी कारण उन्हें अपने पिता से बाकी लड़कियों की तुलना में ज्यादा आज़ादी मिलती थी। उनके पिता ने उन्हें शिक्षा दिलाई और साथ ही उसे लड़कों की भांति घुड़सवार, रक्षा करना, तलवार बाजी करना, निशानेबाजी करना और दुश्मनों की घेराबंदी करने की भी शिक्षा दी।

उनके द्वारा दी गई शिक्षा को रानी लक्ष्मीबाई ने बढ़े ही अच्छी और प्रभावी तरीके से ग्रहण किया। वो हर क्षेत्र में पारंगत थी। बचपन से ही उन्होंने अपनी सेना बनाना शुरू कर दिया था। Rani laxmi bai in hindi और उनके पिता आज सभी पिताओं के लिए एक प्रेरणा है जो ये सिखाते हैं कि बेटा हो या बेटी दोनों को समान रूप से हर क्षेत्र की शिक्षा पाने का अधिकार है।

इस शेरनी को जन्म देने वाली माता का नाम भागीरथी  बाई था जो एक गृहिणी थी। माता पिता से उन्हें मणिकर्णिका नाम मिला था लेकिन सभी उसे मनु के नाम से पुकारते थे। जब मनु मात्र 4 वर्ष की थी तब उनकी माता की मृत्यु हो गई और उनका ध्यान रखने और पालन पोषण की जिम्मेदारी उनके पिता पर आ गई। Rani laxmi bai in hindi पढ़कर हर लड़की अपने पिता में मोरोपंत की छवि देखने की इच्छा करती है।

रानी लक्ष्मीबाई में कई विशेषताएँ थी जो उन्हें बचपन से ही बाकी बच्चों से अलग बनाती थी। बचपन से ही उन्हें धार्मिक कार्यों  में रुचि थी, वो अपने आप को स्वस्थ रखने के लिए नियमित रूप से योग करती थी। उन्हें सैन्य प्रशिक्षण में बहुत रुचि थी और वो उसमें निपुण होने का हर संभव प्रयास करती थी। Rani laxmi bai in hindi से साबित होता है कि लड़की यदि चाहे तो वो हर क्षेत्र में पारंगत हो सकती है।

उन्हें इस बात की भी परख थी कि कौन से घोड़े युद्ध में शामिल करने लायक है। उनमें बचपन से अपने देश की प्रजा की देखभाल करने की और उनके लिए काम करने की लगन थी। इतना ही नहीं उनमें बहुत हिम्मत थी और वो किसी भी दोषी को सजा देने से बिल्कुल नहीं डरती थी। Rani laxmi bai in hindi के जरिए मिली जानकारी किसी भी भारतीय महिला में जोश भरने के लिए काफी है।

 

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रानी लक्ष्मीबाई के घोड़े का नाम क्या था

इतिहासकारों के अनुसार रानी लक्ष्मीबाई के पास एक नहीं बल्कि तीन घोड़े थे जिनके नाम बादल, पवन और सारंगी था। उनका प्रिय घोड़ा बादल था लेकिन एक बार रानी को बचाते बचाते उस घोड़े ने अपनी जान दे दी थी। उसके बाद से उन्होंने पवन घोड़े की सवारी सबसे ज्यादा की।

 

रानी लक्ष्मीबाई की शादी (Rani Laxmi Bai Marriage)

Rani Laxmi Bai In Hindi - rani lakshmi bai information in hindi

उनका विवाह भारत के एक मशहूर और वीरो की भूमि माने जाने वाले मराठा साम्राज्य में 1842  हुआ।  उनका विवाह झांसी नरेश गंगाधर  राव  नेवलेकर के साथ मात्र 14 वर्ष की उम्र में हुआ। उनका विवाह एक प्रसिद्ध गणेश मंदिर में हुआ। शादी के बाद उनका नाम मणिकर्णिका से बदलकर लक्ष्मीबाई रख दिया गया।

उनके पहले पुत्र का जन्म 1851 में हुआ। उनका नाम दामोदर राव रखा गया लेकिन दुर्भाग्यवश उनका देहांत मात्र 4 माह की आयु में हो गया। पुत्र की मृत्यु का उनके पिता गंगाधर राव को बहुत बड़ा सदमा लगा जिससे वो उभर नहीं पाए और बीमार रहने लगे। इसी बीमारी के चलते सन 1853 में उनका देहांत हो गया।

देहांत से पहले दोनों ने ये निश्चित किया था कि वो दोनों महाराज के भाई के पुत्र को गोद लेंगे। उन्होंने ये कार्य ब्रिटिश राज्य के अधिकारियो के सामने किया गया। उन्होंने उनके सामने इसलिए किया ताकि बाद में वो उनके दत्तक पुत्र के खिलाफ न जाए। उन्होंने अपने दत्तक पुत्र को अपना उत्तराधिकार बनाया। उन्होंने अपने पुत्र का नाम आनंद राव रखा जो बाद में बदलकर दामोदर राव कर दिया गया।

Rani laxmi bai in hindi पढ़कर महिला को ये पता चलता है कि हालात चाहे जितने भी कठिन और दुखदायी क्यों न हो महिला में उसे झेलने का अद्भुत गुण होता है और हिम्मत करके उस दुःख से बाहर आकर अपनी जिम्मेदारियां संभल सकती हैं।

 

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रानी लक्ष्मीबाई ने राज्य संभाला

अपने पति झांसी नरेश गंगाधर  राव  नेवलेकर की मृत्यु से रानी लक्ष्मीबाई बहुत आहत और दुखी हुई लेकिन उन्होंने अपना आपा नहीं खोया और राज्य का कार्यभार संभाला। उनका पुत्र अभी छोटा था जिस कारण उन्होंने साहस के साथ झांसी का उत्तरदायित्व अपने कंधो पर ले लिया। जब रानी ने कार्यभार संभाला तब ईस्ट इंडिया कंपनी का गवर्नर लार्ड  डलहौजी  था।

जब लार्ड  डलहौजी  गवर्नर था तब ये नियम था कि सिर्फ उसे ही उतराधिकारी माना जाएगा जो राजा की स्वयं की संतान होगी। इसके अलावा किसी भी रिश्तेदार या गोद लिए पुत्र को उतराधिकारी नहीं माना जाएगा। यदि किसी राज्य का कोई उत्तराधिकारी नहीं होगा तो वो ब्रिटिश साम्राज्य में शामिल कर दिया जाएगा। साथ ही  ये भी नियम बनाया गया  कि राज परिवार को ब्रिटिश कंपनी पेंशन देगी।

गंगाधर राव की मृत्यु के बाद लार्ड  डलहौजी  ने झांसी को हडपने का मन बना लिया। उसने राजा की मृत्यु का फायदा उठाने की तैयारी शुरू की।

लार्ड  डलहौजी  के अनुसार राजा झांसी  नरेश और महारानी की अपनी कोई संतान नहीं है इसलिए नियम के अनुसार अब झांसी पर ब्रिटिश कंपनी का अधिकार है। उसने उनके दत्तक पुत्र को उतराधिकारी मानने से मना कर दिया।

लार्ड  डलहौजी के इस नियम के पीछे की मंशा को लक्ष्मीबाई समझ गई और उन्होंने लन्दन में उनके खिलाफ केस दायर किया। वहां की न्यायालय ने उनके मुक़दमे को ख़ारिज कर दिया और आदेश दिया कि रानी लक्ष्मी वो किला खाली कर दें और अपने पुत्र और परिवार के साथ किले से निकलकर रानी के महल में चली जाए। ये भी कहा गया कि उनके खर्चे के लिए उन्हें ब्रिटिश सरकार से 60,000/-  पेंशन मिलेगी। Rani laxmi bai in hindi से मिली जानकारी ये दर्शाती है कि अंग्रेजों ने किस तरह हमें हमारे ही देश में पराया बना दिया था।

ब्रिटिश सरकार के इस फैसले को मानने से रानी लक्ष्मीबाई ने इंकार कर दिया और वो अपने फैसले पर अडी रही। उन्हें झांसी को अंग्रेजों को सौंपना बिलकुल मंज़ूर नहीं था। अपने राज्य झांसी को और उसमे रहने वाली जनता को सुरक्षित करने के लिए उन्होंने अपनी सेना का गठन शुरू किया। Rani laxmi bai in hindi पढ़ने का प्रभाव इतना ज्यादा है कि रानी की गाथा का कुछ पहलु ही पढ़कर हम में जोश और देशभक्ति जाग उठती है।

 

रानी लक्ष्मीबाई का संघर्ष (Biography Of Rani Lakshmi Bai In Hindi)

Rani Laxmi Bai In Hindi - rani lakshmi bai in hindi

ब्रिटिश  सरकार  ने 7  मार्च,  1854 को ये ऐलान किया कि अब झांसी को ब्रिटिश साम्राज्य में शामिल किया जाएगा। उस वक्त ब्रिटिश अफसर एलिस  के इस बात की घोषणा की। उनके इस ऐलान को रानी लक्ष्मीबाई ने मानने से इंकार कर दिया। उन्होंने अंग्रेजों को साफ कह दिया कि वो झांसी उन्हें नहीं देंगी। उनके इस फैसले के बाद से झांसी में अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष का शंखनाद हो गया। उन्होंने अंग्रेजों से कहा “झांसी मेरी है और मैं झांसी किसी को नहीं दूंगी”।

Rani laxmi bai in hindi में उनका अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष  हमें ये बताता है कि आज जो हम आज़ादी का सुख भोग रहे हैं उसके लिए हमारे पूर्वजों ने कितने बलिदान दिए।

रानी लक्ष्मीबाई ने अपने पड़ोसी राज्यों से मदद मांगी और उनके साथ मिलकर एक सेना तैयार की। उनकी सेना में पुरुषों के साथ साथ महिलाएं भी थी। महिलाओं को भी पुरुषों की तरह युद्ध लड़ना सिखाया गया। उनकी सेना में कई महारथी शामिल थे जैसे दोस्त  खान, गुलाम  खान, सुन्दर – मुन्दर, खुदा  बक्श, दीवान  जवाहर  सिंह, लाला  भाऊ  बक्शी, काशी  बाई, दीवान  रघुनाथ  सिंह, मोतीबाई। इन महारथियों के अलावा लक्ष्मीबाई की सेना में कूल 14000 सैनिक थे।

Rani laxmi bai in hindi से पता चलता है कि लक्ष्मीबाई ने किस तरह अपनी सेना में पुरुषों और महिलाओं को बिना किसी धर्म जाति के भेदभाव के शामिल किया।

इसी दौरान मेरठ  में 10  मई,  1857 को भारत में अंग्रेजों का विद्रोह शुरू हुआ। ये विद्रोह तब हुआ जब भारतीय सैनिकों को ये पता चला कि बन्दुक की गोली में गोमांस और सूअर का मांस है। गोमांस का इस्तेमाल हिन्दुओं की धार्मिक भावनाओं के विरुद्ध था और उनकी भावनाएं बहुत आहत हुई। ये आहत भावनाएं धीरे धीरे एक विद्रोह का रूप  लेने लगी। मेरठ से शुरू हुआ ये विद्रोह धीरे धीरे पूरे देश  में फैल गया।

ब्रिटिश सरकार के लिए इस विद्रोह को दबाना बहुत जरूरी था। उनके लिए लक्ष्मीबाई के मसले को सुलझाने से ज्यादा देश भर में फैल रहे विद्रोह को शांत करना ज्यादा जरूरी था, इसलिए उन्होंने झांसी के मामले को कुछ वक्त के लिए टाल दिया और विद्रोह को दबाने में व्यस्त हो गए।

जब अंग्रेज उस विद्रोह को दबाने में लगे हुए थे तब रानी लक्ष्मीबाई अपने पड़ोसी राज्य दतिया और ओरछा से युद्ध कर रही थी। विद्रोह को दबाने के बाद अंग्रेजो ने फिर से झांसी की तरफ रुख किया और सन 1858 में झांसी पर सर  ह्यू  रोज़  ने अपनी सेना के साथ हमला कर दिया। तब तात्या टोपे झांसी की सेना के सेनापति थे और उन्होंने 20,000  सैनिकों को लेकर अंग्रेजों की सेना का डटकर मुकाबला किया।

दोनों के बीच 2 सप्ताह तक युद्ध चला। जल्द ही अंग्रेजी सेना क़िले की दीवार तोड़ने में सफल हुई और उन्होंने झांसी में घुस कर नगर पर कब्ज़ा जमा लिया। नगर पर कब्ज़ा होने के बाद उनकी सेना ने नगरवासियों को परेशान करना शुरू कर दिया और हर जगह लुटपाट मचाने लगे। इस युद्ध में रानी लक्ष्मीबाई ने अपने दत्तक पुत्र दामोदर राव को बचा लिया। Rani laxmi bai in hindi से पता चलता है कि एक माँ अपने बच्चे की सुरक्षा के लिए किस हद तक जा सकती है।

 

काल्पी  युद्ध

अंग्रेजों से बचकर वो काल्पी राज्य पहुंची। वहां उन्होंने कुछ समय बिताया। वो यहाँ पर तात्या टोपे और अपने दल के साथ आई थी। कालपी नरेश ने उनकी स्थिति को समझा और अपने राज्य में शरण दी। इतना ही नहीं उन्होंने रानी लक्ष्मीबाई की सैन्य मदद भी की।

झांसी हडपने के बाद सर  ह्यू  रोज  ने 22  मई,  1858 को कालपी पर हमला कर दिया।  रानी लक्ष्मीबाई ने साहस के साथ और अपनी कुशल रणनीति के चलते अंग्रेजों को हरा दिया और अंग्रेजों को कालपी से वापिस जाना पड़ा। इस हार से सर  ह्यू  रोज तिल मिला उठा और उसने कुछ समय बाद फिर से कालपी पर हमला कर दिया। फिर से हुए इस हमले में रानी लक्ष्मी बाई को हार का मुंह देखना पड़ा।

युद्ध में हार के बाद  गोपालपुर में   बन्दा  के  नवाब, राव  साहेब  पेशवा, रानी  लक्ष्मीबाई, तात्या  टोपे और उनकी सेना के अन्य महारथियों ने सलाह मशवरा किया और ये तय किया कि ग्वालियर पर हमला करके उस पर अधिकार प्राप्त करेंगे।

सभी ने मिलकर एक रणनीति बनाई और ग्वालियर पर हमला किया। अपनी विद्रोही सेना के साथ उन्होंने ग्वालियर पर विजय प्राप्त की और ये राज्य और ग्वालियर का किला पेशवा के हवाले कर दिया। Rani laxmi bai in hindi उनकी ईमानदारी और दोस्तों का साथ निभाने के गुण को प्रदर्शित करता है।

 

रानी लक्ष्मीबाई मृत्यु (Rani Laxmi Bai Death)

Rani Laxmi Bai In Hindi - rani laxmi bai death

रानी लक्ष्मीबाई का अगला युद्ध  किंग्स  रॉयल  आयरिश के साथ 17 जून, 1858 को हुआ। इस युद्ध में वो अपने सेना के साथ ग्वालियर के पूर्वी मोर्चे पर तैनात थी। इस मोर्चे में उनकी सेना में कई महिलाएं थी जो पुरुषों की पोषक में युद्ध कर रही थी। इस युद्ध में रानी लक्ष्मी नए घोड़े पर सवार थी। इस वक्त उनका प्रिय और प्रशिक्षित उनके साथ नहीं था।

नए घोड़े में बैठकर रानी लक्ष्मीबाई नहर के पार कूदने की कोशिश कर रही थी लेकिन नया घोड़ा नहर पार नहीं कर पाया। रानी लक्ष्मीबाई इस स्थिति को भलीभांति समझ गयी थी और उन्होंने वही रहकर युद्ध करते रहने का फैसला किया। वो इस युद्ध में लड़ते लड़ते बुरी तरह घायल हो गई।

युद करते करते वो अपने घोड़े से गिर गई। युद्ध के दौरान उन्होंने पुरुष द्वारा पहने जाने वाला वस्त्र पहने थे। जब वो घोड़े से गिरी तो अंग्रेजों ने उन्हें कोई पुरुष सैनिक समझा और वहां बिना मारे छोड़ दिया।

बाद में उनके कुछ सैनिक हिम्मत करके उनके पास आए और उन्हें गंगादास  मठ  में चुपके से ले गए। वहां सैनिको ने उन्हें गंगाजल पिलाया। उन्होंने अपने सैनिकों से कहा कि मेरी अंतिम इच्छा है कि मेरे मृत देह को कोई भी अंग्रेज अफसर न छू पाए।  रानी लक्ष्मीबाई फूलबाग  क्षेत्र, ग्वालियर  में वीरगति को प्राप्त हुई। Rani laxmi bai in hindi ने ये साबित किया एक महिला चाहे तो वो हर परेशानी का सामना बिना डरे कर सकती है और अपनी सभी इच्छाओ को पूरा कर सकती है।

रानी लक्ष्मीबाई की मृत्यु के पश्चात अंग्रेजों ने ग्वालियर पर हमला किया और राज्य पर कब्ज़ा कर लिया। कब्ज़े के बाद उन्होंने मनु अर्थात रानी लक्ष्मीबाई के पिता मोरोपन्त ताम्बे को हिरासत में ले लिया और उन्हें फाँसी दे दी।

रानी लक्ष्मीबाई के दत्तक पुत्र दामोदर राव जीवित रहे और ब्रिटिश सरकार उन्हें पेंशन देती रही। उन्होंने कभी भी उन्हें झांसी का उतराधिकारी नहीं माना। दामोदर राव बाद में इंदौर में बस गए और अंग्रेजों से अपने अधिकार पाने की असफल कोशिश करते रहे। 58 वर्ष की उम्र में 28 मई,  1906  को उनकी मृत्यु हो गयी।Rani laxmi bai in hindi ये साबित करती है कि महिलाएं पुरुषों से किसी भी क्षेत्र में कम नहीं है, और जरुरत पढ़ने पर दुश्मनों के दांत भी खट्टे कर सकती हैं ।

इस तरह रानी लक्ष्मी बाई ने अंग्रेजों के खिलाफ युद करके देश की आजादी पाने के सपने में बहुत बडा योगदान दिया। उनके इस विद्रोह ने आने वाली पीढ़ी को हिम्मत दी और आजादी की लड़ाई में पुरुषों के साथ साथ करोडो महिलाओं ने भी भाग लिया और अपने अथक प्रयास से भारत को अंग्रेजो से आजादी दिलाई। Rani laxmi bai in hindi वो विषय है जो भारतीय शिक्षा प्रणाली का प्रमुख भाग है। Rani laxmi bai in hindi इसलिए रखा गया है ताकि हमारे बच्चे उनके हौसले, उनकी विशेषताओं और उनकी दिलेरी से प्रेरणा लें।

Rani laxmi bai in hindi वो मिसाल है जो यदि सुन ले या पढ़ ले वो अपने देश के लिए कुछ करने को तैयार हो जाए।

 

Frequently Asked Questions

Question 1: रानी लक्ष्मीबाई को किसने मारा ?

रानी लक्ष्मीबाई कालपी युद में लड़ते लड़ते बहुत घायल हो गयी थी और ग्वालियर में वो वीरगति को प्राप्त हुई।

Question 2: रानी लक्ष्मीबाई की मृत्यु कब हुई?

18 जून 1858 को उनकी मृत्यु हुई।

Question 3 : झांसी की रानी का असली नाम क्या था?

उनका नाम मणिकर्णिका था और उन्हें प्यार से लोग मनु बुलाते थे।

 

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