प्रसिद्ध कवि रहीम, जिनके रहीम के दोहे (Rahim ke Dohe) आज भी लोगों को प्रेरणा देते हैं उनका पूरा नाम है अब्दुर्रहीम ख़ानख़ाना। वे अकबर के संरक्षक होने के साथ साथ विलक्षण प्रतिभा के भी स्वामी थे। उन्हें राजनीति, काव्य रचना का गुण, वीरता आदि सभी अपने माता पिता से मिला। उन्होंने मुल्ला मुहम्मद से अरबी, तुर्की, फारसी भाषा का ज्ञान लिया और उनसे ही कविता लिखना, छंद रचना करना, तर्कशास्त्र, फारसी व्याकरण, गणित आदि सीखा और उसमें पारंगत हुए।
रहीम मुसलमान थे, फिर भी हिंदी साहित्य में उनका योगदान सराहनीय है। उनके कई काव्यों में गीता, महाभारत, रामायण, पुराणों आदि का जिक्र है तथा वे रहिमन नाम से भी जाने जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि वे कृष्ण भक्त भी थे। उनके सुन्दर काव्य में भक्ति, नीति, श्रृंगार, प्रेम आदि का खूबसूरती से समावेश था, रहिमन ने अपने काव्य और दोहों को जिस प्रकार बहुत ही सरल भाषा में लिखा, वे काफी अद्भुत और सराहनीय है।
उन्होंने अपने काव्य लेखन के लिए कई बार ब्रज भाषा, खड़ी बोली, मीठि अवधि भाषा का प्रयोग किया है। सबसे ज्यादा प्रसिद्ध उनके रहीम के दोहे (Rahim ke Dohe) हुए जो आज कई कक्षाओं में पढ़ाये जाते है।
उनके द्वारा रचे दोहे रोजमर्रा के जीवन से जुड़े हैं, जिस वजह से वे सामान्य व्यक्ति के जीवन को बहुत प्रभावित करते हैं। लोग उनके दोहे पढ़कर उसे अपने जीवन में अपनाकर जीवन को सकारात्मक रूप देने की दिशा में बढ़ जाते है।
रहीम के दोहे (Rahim Ke Dohe)
दोहा 1
रहिमन अंसुवा नयन ढरि, जिय दुःख प्रगट करेइ,
जाहि निकारौ गेह ते, कस न भेद कहि देइ।
अर्थ – रहीम के दोहे (Rahim ke Dohe) की श्रंखला के इस दोहे में रहीम जी कह रहे है जिस प्रकार आँखों से निकलते आंसू दिल के दर्द को बाहर ले आते हैं और सबको पता चल जाता है कि आप दुखी हैं उसी प्रकार जब सच बाहर आता है तो घर के भेद भी बाहर आ ही जाते हैं।
दोहा 2
रहिमन धागा प्रेम का, मत तोरो चटकाय।
टूटे पे फिर ना जुरे, जुरे गाँठ परी जाय।।
अर्थ – इस दोहे में रहीम जी प्रेम से जुड़ी एक महत्पूर्ण बात समझाने की कोशिश कर रहे हैं। वह कह रहे हैं प्रेम का रिश्ता बहुत ही नाज़ुक होता है और ये एक झटके से भी टूट सकता है और यदि ये किसी मनमुटाव या मतभेद या झगड़े की वजह से टूट जाए तो फिर से जुड़ना मुश्किल होता है और अगर किसी तरह जुड़ भी जाए तो प्रेम के इन टूटे हुए धागों में हमेशा के लिए गाँठ रह जाती है।
ऐसा और ज्ञान पाना चाहते हैं? यह भी पढ़ें फिर:
10 Important & Powerful Ramayan Ke Dohe With Meaning
स्वामी विवेकानंद के 9 अनमोल वचन जीवन में प्रेरणा और सही मार्ग पाने के लिए
दोहा 3
बिगरी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय।
रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय।।
अर्थ – रहीम के दोहे (Rahim ke Dohe) की श्रंखला के इस दोहे में रहीम जी कह रहे हैं व्यक्ति को हर किसी के भी साथ बहुत सोच समझकर और अच्छा व्यवहार करना चाहिए क्योंकि यदि किसी कारणवश कोई बात दो लोगों के बीच बिगड़ जाती है तो उसे ठीक करना और पहले जैसे ही बनाना बहुत मुश्किल होता है। कई बार तो ये नामुमकिन हो जाता है बिलकुल वैसे ही जैसे अगर एक बार दूध फट जाए तो उसे आप जितना चाहे माथो उससे मक्खन नहीं निकाल सकते।
दोहा 4
जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करी सकत कुसंग।
चन्दन विष व्यापे नहीं, लिपटे रहत भुजंग।
अर्थ- इस दोहे में रहीम जी व्यक्ति के अच्छे आचरण और व्यवहार के बारे में बता रहे हैं। वह कह रहे है यदि व्यक्ति मन से अच्छा और सच्चा है और अच्छा व्यवहार करता है, उसका बुरी संगत भी कुछ नहीं बिगाड़ सकती है जैसे चन्दन के पेड़ पर यदि जहरीला सांप लिपट जाए तो उसका जहर पेड़ को जहरीला नहीं बना सकता।
दोहा 5
रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि।
जहां काम आवे सुई, कहा करे तरवारि।।
अर्थ – रहीम के दोहे (Rahim ke Dohe) की श्रंखला के इस दोहे में रहीम जी काम को लेकर एक विशेष बात समझा रहे हैं। वह कह रहे हैं कि व्यक्ति को यदि उसके सामने कोई बड़ा काम दिख जाए तो उसे छोटे काम को बेकार समझकर छोड़ना नहीं चाहिए क्योंकि कुछ काम जो सिर्फ सुई से हो सकता है वहां पर तलवार का क्या काम।
दोहा 6
जो बड़ेन को लघु कहें, नहीं रहीम घटी जाहिं।
गिरधर मुरलीधर कहें, कछु दुःख मानत नाहिं।।
अर्थ- रहीम जी इस दोहे में समझा रहे हैं कि यदि कोई छोटा बड़े को छोटा कह दे तो बड़े व्यक्ति का बड़प्पन कम नहीं हो जाएगा। जैसे आप गिरधर ग़ोपाल को मुरलीधर भी कहो तो भी उनकी महिमा अपरम्पार ही रहेगी और उन्हें कोई मुरलीधर कहेगा तो उन्हें दुःख नहीं होगा।
दोहा 7
खीरा सिर ते काटि के, मलियत लौंन लगाय।
रहिमन करुए मुखन को, चाहिए यही सजाय।।
अर्थ – रहीम जी रहीम के दोहे (Rahim ke Dohe) की श्रंखला के इस दोहे में कह रहे हैं जिस प्रकार खीरे को ऊपर से काटकर नमक लगाकर रगड़कर उसका कड़वापन निकाला जाता है और फिर इस्तेमाल किया जाता है उसी प्रकार कड़वा बोलने वाले और नकारात्मक विचार वालों को भी ऐसी ही सज़ा मिलनी चाहिए।
दोहा 8
रूठे सुजन मनाइए, जो रूठे सौ बार।
रहिमन फिरि फिरि पोइए, टूटे मुक्ता हार।।
अर्थ- रहीम के दोहे (Rahim ke Dohe) की श्रंखला के इस दोहे में रहीम जी व्यक्ति और उसके प्रियजनों के बीच सम्बन्ध के बारे में बता रहे है। वे कह रहे हैं यदि हमारे प्रियजन हमसे किसी कारणवश एक बार क्या सौ बार भी रूठ जाएँ तो भी हमें उन्हें प्यार से मना लेना चाहिए क्योंकि परिवार मोतियों की माला की तरह है। जिस तरह माला टूटने पर फिर धागे में पिरोकर पहले जैसे बनाई जा सकती है वैसे ही परिवार भी रूठों को मनाकर पहले जैसे बनाया जा सकता है।
दोहा 9
जैसी परे सो सहि रहे, कहि रहीम यह देह।
धरती ही पर परत है, सीत घाम औ मेह।।
अर्थ- रहीम के दोहे (Rahim ke Dohe) की श्रंखला के इस दोहे में रहीम जी कह रहे हैं जिस प्रकार हमारी धरती माँ गर्मी, सर्दी और बारिश को सहन करती है उसी प्रकार व्यक्ति को भी अपने शरीर को सब सहने लायक बनाना चाहिए अर्थात जीवन में चाहे जितने भी सुख दुःख आए उसे बिना घबराए सहन कर लेना चाहिए।
दोहा 10
दोनों रहिमन एक से, जों लों बोलत नाहिं।
जान परत हैं काक पिक, रितु बसंत के माहिं।।
अर्थ- इस दोहे में रहीम कह रहे हैं कि जैसे कोयल और कौवा दोनों काले है और दोनों में से कौन कोयल है और कौन कौवा है ये कहना तब तक कठिन है जब तक दोनों चुप है लेकिन जैसे वसंत ऋतु आती है तब कोयल की मीठी आवाज़ से दोनों का अंतर पता चल जाता है ठीक वैसे ही किसी को भी देखकर ये नहीं बताया जा सकता है कि कौन व्यक्ति अच्छा है और कौन बुरा। उनकी पहचान तब होती है जब वह किसी के साथ बात या व्यवहार करते है।
दोहा 11
पावस देखि रहीम मन, कोइल साधे मौन।
अब दादुर वक्ता भए, हमको पूछे कौन।।
अर्थ – रहीम के दोहे (Rahim ke Dohe) की अद्भुत श्रंखला के इस दोहे में रहीम कह रहे हैं कि जिस प्रकार वर्षा की ऋतु आने पर चारों तरफ सिर्फ मेंढक की आवाज़ ही सुनाई देती है और उनकी आवाज़ में कोयल की आवाज़ दब जाती है उसी प्रकार कई बार गुणवान व्यक्ति को सब जानते हुए भी चुप रहना पड़ता है और उसकी जगह बिना ज्ञान वाले गुणहीन लोगों की बातें ही गूंजती है और सब तरफ उनकी बातों का ही बोलबाला होता है।
दोहा 12
रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय।
सुनी इठलैहैं लोग सब, बांटी न लेंहैं कोय।।
अर्थ – रहीम जी इस दोहे में दुःख को न बांटने की सलाह दे रहे है। वह कहते हैं कि हमें हमारे दुखों का सबके सामने ढिंढोरा नहीं पीटना चाहिए क्योंकि वे हमारे दुःख का मजाक ज़रूर उड़ाएंगे लेकिन हमारे दुःख को कम करने में मदद नहीं करेंगे और कोई भी किसी का दुःख बांटना नहीं चाहता है।
दोहा 13
वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग।
बांटन वारे को लगे, ज्यों मेंहदी को रंग।।
अर्थ – रहीम के दोहे (Rahim ke Dohe) की श्रंखला के इस दोहे में रहीम जी उन लोगों की प्रशंसा कर रहे हैं जो हमेशा किसी न किसी की मदद करते हैं क्योंकि जो दूसरों का भला करता है उसका अपने आप भला हो ही जाता है ठीक वैसे ही जैसे मेहँदी लगाने वालों के हाथ भी मेहँदी के रंग से अपने आप ही रंग जाते हैं।
दोहा 14
ओछे को सतसंग रहिमन तजहु अंगार ज्यों।
तातो जारै अंग सीरै पै कारौ लगै।
अर्थ – रहीम के दोहे (Rahim ke Dohe) की श्रंखला के इस दोहे में रहीम कह रहे है कि जो लोग ओछे होते हैं उनसे हमेशा दूर ही रहना चाहिए क्योंकि जब भी आप उनके पास जायेंगे आपको नुकसान ही होगा, ठीक वैसे ही जैसे गर्म अंगार के पास जाने पर जलने का डर है और ठंडा होने के बाद पास जाने से शरीर में कालिक लगने का डर है अर्थात हर अवस्था में वे हमें नुकसान ही पहुंचाएगा।
दोहा 15
रहिमन विपदा हू भली, जो थोरे दिन होय।
हित अनहित या जगत में, जान परत सब कोय।
अर्थ – रहीम कहते हैं कि यदि विपत्ति कुछ समय की हो तो वह भी ठीक ही है, क्योंकि विपत्ति में ही सबके विषय में जाना जा सकता है कि संसार में कौन हमारा हितैषी है और कौन नहीं।
दोहा 16
तासों ही कछु पाइए, कीजे जाकी आस
रीते सरवर पर गए, कैसे बुझे पियास
अर्थ – रहीम के दोहे (Rahim ke Dohe) की प्रेरणादायी श्रंखला के इस दोहे से रहीम कहना चाहते हैं कि जैसे बिना पानी के सूखे तालाब से प्यास बुझा पाने की उम्मीद करना व्यर्थ है ठीक वैसे ही हमें उससे ही कुछ पाने की आशा करनी चाहिए जिससे कुछ मिलने की उम्मीद हो।
दोहा 17
समय पाय फल होत है, समय पाय झरी जात।
सदा रहे नहिं एक सी, का रहीम पछितात।
अर्थ – इस दोहे से रहीम व्यक्ति को समझा रहे हैं कि वक्त कभी भी एक जैसा नहीं रहता, दुःख अगर आया है तो सुख भी ज़रूर आएगा। ऐसा कभी नहीं होता कि व्यक्ति के जीवन में हमेशा ही दुःख रहे या हमेशा सुख रहे। जिस प्रकार पेड़ में फल समय पर ही उगते है और फिर बाद में झड़ भी जाते हैं, उसी तरह सुख और दुःख दोनों का आना जाना लगा रहता है इसलिए दुःख आने पर व्यक्ति को व्यर्थ की चिंता नहीं करनी चाहिए।
दोहा 18
वृक्ष कबहूँ नहीं फल भखैं, नदी न संचै नीर
परमारथ के कारने, साधुन धरा सरीर !
अर्थ – इस दोहे में रहीम कह रहे हैं कि जैसे पेड़ उस पर लगे फल स्वयं नहीं खाते, नदी अपने लिए कभी भी जल को संचित करके नहीं रखती वैसे ही सज्जन और परोपकारी व्यक्ति इस धरती पर सिर्फ परोपकार करने आए है। उन्हें इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि उनका भला हो रहा है या नहीं या इस परोपकार से उनको कोई अच्छा फल मिल रहा है या नहीं।
दोहा 19
साधु सराहै साधुता, जाती जोखिता जान
रहिमन सांचे सूर को बैरी कराइ बखान
अर्थ – रहीम के दोहे (Rahim ke Dohe) की श्रंखला के इस दोहे में रहीम जी कह रहे हैं कि जो व्यक्ति सज्जन होता है उसकी हर तरफ तारीफ होती है। उसकी तारीफ़ साधू भी करते हैं, ठीक वैसे ही जो सच्चा वीर है, जो निडर है और जो हमेशा सच्चाई के लिए और मदद के लिए तैयार रहता है उसकी तारीफ सिर्फ दोस्त ही नहीं बल्कि शत्रु भी करते हैं।
दोहा 20
रहिमन नीर पखान, बूड़े पै सीझै नहीं
तैसे मूरख ज्ञान, बूझै पै सूझै नहीं
अर्थ – जिस प्रकार जल में रहने पर भी पत्थर नरम नहीं होता, उसी प्रकार मूर्ख व्यक्ति की अवस्था होती है कि ज्ञान दिए जाने पर भी उसकी समझ में कुछ नहीं आता। इस दोहे से रहीम ये समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि जिस प्रकार पत्थर कितनी देर भी पानी में रहे वह नरम नहीं होगा उसी प्रकार किसी मुर्ख व्यक्ति को जितनी भी ज्ञान की बातें बताई जाए, उन्हें जितना भी समझा जाए उनका कुछ नहीं होगा।
दोहा 21
राम न जाते हरिन संग से न रावण साथ
जो रहीम भावी कतहूँ होत आपने हाथ
अर्थ – रहीम के दोहे (Rahim ke Dohe) की लिस्ट के इस दोहे में रहीम ये समझाना चाह रहे हैं कि व्यक्ति के बस में कुछ नहीं होता और जो होना होता है, जो नियति में लिखा है, वो होकर ही रहता है और अगर ऐसा न होता तो क्या श्री राम हिरन के पीछे जाते और धोखे से रावण सीता माता का हरण कर लंका ले जा पाता? व्यक्ति को ये समझना चाहिए कि नियति में जो उन्हें मिलना लिखा है वह उनको मिलकर ही रहेगा और जो मिलना नहीं लिखा है वे लाख कोशिश के बाद भी नहीं मिलेगा।
इस पोस्ट में हमने आपको प्रेरक रहीम के दोहे (Rahim ke Dohe) बताये। आपको इन सभी दोहों में से कौन से दोहे ने सबसे ज्यादा प्रभावित किया? वैसे तो सभी रहीम के दोहे (Rahim ke Dohe) कोई न कोई बात सिखाते है।
ऐसा और ज्ञान पाना चाहते हैं? यह भी पढ़ें फिर:
महाभारत में अर्जुन के 12 नाम और हर एक नाम के पीछे का रहस्य
कबीरदास के दोहे – Kabir ke Dohe in Hindi