हमारे ऋषि मुनियों ने प्राचीनकाल में कुछ सिद्धांतों का प्रतिपादन किया था, जिसके अंतर्गत मनुष्य अपने जीवन के कर्तव्यों को पूर्ण करते हुए जीवन के अंतिम लक्ष्य मोक्ष की प्राप्ति कर सके, इसी अवधारणा को पुरुषार्थ या पुरुषार्थ चतुष्ट्य कहा गया। यह पुरुषार्थ ही है, जिसके पीछे मनुष्य आजीवन भागता रहता है तथा अपने उद्देश्यों की पूर्ति करता है। तो आइये जानते हैं चार पुरुषार्थ क्या है (purusharth kise kahate hain) :
चार पुरुषार्थ क्या है (Purusharth Kise Kahate Hain)
पुरुषार्थ दो शब्दों पुरुष और अर्थ से मिलकर बना है, जहाँ पुरुष का अर्थ मनुष्य जाति से है और अर्थ से तात्पर्य समझने से है। इस प्रकार पुरुषार्थ का अर्थ है – मनुष्य के जीवन का अर्थ समझना। ईश्वर ने हम मनुष्यों को इस योग्य बनाया है कि हम अपनी बुद्धि का प्रयोग करते हुए स्वयं की रक्षा कर सकें तथा एक सभ्यता का निर्माण कर सकें। इस सभ्यता में हम एक दूसरे की सहायता करते हुए कुछ सिद्धांतों के आधार पर अपना जीवन व्यतीत करते हैं।
ये चार पुरुषार्थ मनुष्य जीवन के लक्ष्य हैं जिनके आधार पर हम इस समाज में एकजुट होकर रह रहे हैं। ये चार पुरुषार्थ हमारे मनुष्य जीवन के चार स्तम्भ हैं, जिनके द्वारा हम अपना जीवन व्यतीत कर सकते हैं।
प्राचीनकाल की एक कहावत है “विद्याविहीनः पशुभिः समाना” अर्थात विद्या के बिना हम सब पशु के समान हैं। जिस प्रकार जंगल में एक पशु दूसरे पशु का खाना बनकर मूल्यवान बनता है, ठीक वैसे ही हम हमारी बुद्धि का प्रयोग करते हुए मानव सभ्यता में एक दूसरे की सहायता करके एक दूसरे के जीवन में मूल्यवान बनते हैं। ये चार पुरुषार्थ भी हमें उसी के लिए प्रेरित करते हैं, जिससे या तो हम दूसरों के लिए या दूसरे हमारे लिए मूल्यवान बन सकें तथा एक दूसरे पर निर्भर रहकर एक सभ्य समाज की रचना हो सके।
पुरुषार्थ के प्रकार
चार पुरुषार्थ क्या है (purusharth kise kahate hain) समझने के बाद अब पुरुषार्थ के प्रकारों की बात करते हैं। वेदों और धर्म ग्रंथों में व्यक्ति के सम्पूर्ण जीवन को सुखी और मूल्यवान बनाने के लिए पुरुषार्थ का सिद्धांत प्रतिपादित किया गया है, जिसके अंतर्गत व्यक्ति धर्म, अर्थ और काम के द्वारा जीवन के अंतिम लक्ष्य मोक्ष की और अग्रसर हो सके।
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1) धर्म
पुरुषार्थ किसे कहते हैं (purusharth kise kahate hain) इस कड़ी में पहला पुरुषार्थ है धर्म, धर्म का अर्थ स्वयं के स्वाभाव व कर्तव्य से है। मनुष्य, समाज या मानव सभ्यता के प्रति जो भी कर्तव्य निभाता है, वह धर्म कहलाता है।
जब हम अपने कार्यों के द्वारा मानव समाज के लिए उपयोगी सिद्ध हो, तब हम पहले पुरुषार्थ अर्थात धर्म का पालन करते हैं। इसके अंतर्गत समाज के लिए कुछ करते हैं, अन्य लोगों के प्रति सद्भावना रखते हैं, किसी की देखभाल करते हैं आदि।
2) अर्थ
पुरुषार्थ किसे कहते हैं (purusharth kise kahate hain) इस कड़ी में दूसरा पुरुषार्थ है अर्थ, धर्म में हम एक दूसरे के प्रति अपने कर्तव्य को समझते हुई एक दूसरे के लिए उपयोगी होते हैं। इसके लिए हमें अर्थ की आवश्यकता होती है, अर्थ के अंतर्गत हम धन अर्जित करते हैं, ताकि उस धन से हम आवश्यकता पड़ने पर दूसरों की सहायता कर सकें।
यह पुरुषार्थ दर्शाता है कि इसके द्वारा हम धन अर्जित करके स्वयं भी उसका उपभोग करें तथा दूसरे लोगों की भी सहायता करें एवं समाज के विकास में सहयोगी बनें।
3) काम
पुरुषार्थ किसे कहते हैं (purusharth kise kahate hain) इस कड़ी में तीसरा पुरुषार्थ है काम, वैसे तो काम पुरुषार्थ को सिर्फ वासना से जोड़ा जाता है, परन्तु हमारे धर्मशास्त्रों में काम की वृहद व्याख्या की गयी है। काम का एक अर्थ कामनाओं से भी होता है, अर्थात हम अपनी सुख प्राप्ति के लिए जो भी कामना करते हैं, वह सब काम का ही रूप है।
काम पुरुषार्थ में काम वासना के साथ ही सांसारिक दृष्टि से जीवन के आनंद का उपभोग भी समाहित है। परन्तु इस पुरुषार्थ का नियंत्रित होना भी आवश्यक है, क्योंकि मनुष्य की कामनाओं का कभी अंत नहीं होता। मनुष्य की एक कामना पूर्ण होती है, तो दूसरी खड़ी हो जाती है और यह चक्र निरंतर चलता रहता है।
4) मोक्ष
पुरुषार्थ किसे कहते हैं (purusharth kise kahate hain) इस कड़ी में चौथा और अंतिम पुरुषार्थ है मोक्ष, जिसका अर्थ है पहले तीन पुरुषार्थों अर्थात धर्म, अर्थ और काम से दूर हो जाना तथा किसी भी प्रकार के बंधन में ना जकड़े रहना। हिन्दू धर्म तथा अन्य धर्म एवं दर्शन सभी में मनुष्य जीवन का अंतिम लक्ष्य मोक्ष को ही माना है।
इस पुरुषार्थ के अंतर्गत व्यक्ति अपने धर्म अर्थात कर्तव्यों से मुक्त होकर अर्थ एवं काम से भी दूर हो जाता है तथा अपना ध्यान ज्ञान प्राप्ति और ईश्वर की भक्ति में लगाकर जन्म मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है।
पुरुषार्थ का महत्व
हिन्दू दर्शन में पुरुषार्थ अर्थात धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का विशेष महत्व है। पुरुषार्थ का सिद्धांत इस प्रकार से प्रतिपादित किया गया है, जिससे व्यक्ति विशेष अपने सभी कर्तव्यों को पूर्ण करते हुए एक आदर्श समाज की स्थापना में अपना योगदान दे सके। पुरुषार्थ के माध्यम से ही व्यक्ति भौतिक और आध्यात्मिक जीवन के मध्य संतुलन स्थापित करता है।
हमारे ऋषि मुनियों ने पुरुषार्थ किसे कहते हैं (Purusharth kise kahate hain) इस सिद्धांत का प्रतिपादन मानव समाज के उत्थान के लिए किया था तथा इन चार पुरुषार्थों में से किसी को भी नकारा नहीं जा सकता। साथ ही इन चारों पुरुषार्थों के मध्य संतुलन होना भी आवश्यक है, किसी एक पुरुषार्थ की अधिकता या कमी से जीवन का संतुलन बिगड़ सकता है।
Frequently Asked Questions
Question 1: चार पुरुषार्थ क्या है (4 purusharth kya hai)?
हिन्दू धर्म ग्रंथों में बताये गए चार पुरुषार्थ इस प्रकार हैं – धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष
Question 2: सरल शब्दों में पुरुषार्थ का अर्थ क्या है?
पुरुषार्थ दो शब्दों पुरुष और अर्थ से मिलकर बना है, जहाँ पुरुष का अर्थ मनुष्य जाति से है और अर्थ से तात्पर्य समझने से है। इस प्रकार पुरुषार्थ का अर्थ है – मनुष्य के जीवन का अर्थ समझना।
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