भोलेनाथ का दिन आया शिवरात्रि का दिन आया। इस दिन सभी के मन में शिवजी का मन्त्र चलता रहता है। हिन्दू धर्म के अनुयायी शिवरात्रि के दिन mahashivratri puja करते हैं, उनका जलाभिषेक करते हैं, व्रत करते हैं और शिवजी के भजन गाते हैं और कीर्तन करते हैं। इस दिन का बहुत महत्व है। ये दिन फागुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन आता है। Mahashivratri Puja का ये दिन शिव भक्तो के लिए बहुत बड़ा दिन है। कई लोग कावड यात्रा पर भी जाते हैं। रास्ते भर वो शिव भजन गाते हुए जाते हैं।
महाशिवरात्रि पूजा कैसे करें? How to do Mahashivratri Puja?
महाशिवरात्रि के पावन दिन Mahashivratri Puja सही तरीके से करना चाहिए ताकि भोलेनाथ आपकी पूजा से प्रसन्न होकर आपकी सभी मनोकामनाओ को पूरा कर दें। चलिए हम आपको बताते हैं महाशिवरात्रि पूजा कैसे करे। पूजा से पहले कुछ तैयारी करे।
- सबसे पहले एक लोटा ले, ताम्बे या मिटटी दोनों में से कोई भी चलेगा। अब इसमें दूध या पानी डाले और उसमें उसमे धतूरे का फूल, बेलपत्र और अक्षत यानी चावल डाले।
- अब पंचामृत तैयार करे। एक कटोरी में दूध, दही , शहद, घी और चीनी डाले और अच्छे से मिला ले।
चलिए अब विधि पर बात करते हैं।
महाशिवरात्रि पुजा विधि (Mahashivratri Puja Vidhi)
- सबसे पहले अपनी सभी नित्य क्रियाओ से निवृत हो कर स्नान करे।
- स्नान करने के बाद साफ़ धुले कपडे पहनकर भगवान शिव की मूर्ति, शिवलिंग या मंदिर में उनकी पूजा का संकल्प शुद्ध मन से ले।
- अब भोलेनाथ और पार्वती माता का पूरे दिल से स्मरण करे।
- ध्यान रहे जब आप पूजा कर रहे हो तो शिवजी के मन्त्र का मन ही मन जप करते जाए।
- अब सबसे पहले शिवलिंग पर चन्दन का लेप लगाए और फिर पंचामृत से अभिषेक करे।
- फिर एक ताम्बे या मिटटी के लोटे में तैयार दूध या जल चढ़ाए।
- अब दिया और कपूर जगाए।
- अब भोलेनाथ की पूजा करे और ॐ नमः शिवाय मन्त्र का जाप करे।
- जब पूजा हो जाए तब गोबर के उपले ले और उसको जलाए। अब एक कटोरी में चावल, तिल और घी डाले और मिक्स करे। अब इस मिश्रण से जलते हुए उपले पर आहुति डाले।
- संध्या के समय भोलेनाथ का भजन गाए या मंदिर में चल रहे कीर्तन का हिस्सा बने।
महाशिवरात्रि व्रत कथा (Mahashivratri Puja Katha)
एक बार की बात है माता पार्वती ने भोलेनाथ से पुछा,” स्वामी ऐसा कौन सा सरल और श्रेष्ठ व्रत और पूजन है जिस करके व्यक्ति आपको कृपा पा सकता है।”
पार्वती माँ के इस सवाल का जवाब देते हुए भोलेनाथ ने शिवरात्रि के व्रत का विधान बताया और कथा सुनाई।
एक गाँव में शिकारी रहा करता था। वो शिकार करके अपने परिवार का भरण पोषण करता था। शिकारी पर एक साहूकार का कर्ज था जिसे वो समय पर न चूका पाया था। गुस्से में आकर साहूकार ने उसे बंदी बनाया और शिवमठ में कैद कर दिया। जिस दिन साहूकार ने शिकारी को कैद किया वो दिन संयोग वश शिवरात्रि का दिन था।
शिकारी कैद में रहकर शिव से जुडी सभी धार्मिक बाते सुन रहा था। उसने शिवरात्रि की कथा चतुर्दशी पर सुनी। जब संध्या हुई तब शिकारी को साहूकार ने बुलाया और उससे कर्ज वापिस चुकाने के बारे में बात की। शिकारी ने साहूकार को वचन दिया कि वो अगले दिन सारा कर्जा चूका देगा। ऐसा कहकर वो कैद से छूट गया।
रोज की भांति शिकारी जंगल में शिकार करने के लिए गया। वो कैद में रहने के कारण भूखा प्यासा था जिससे वो व्याकुल हो रहा था। इसी व्याकुलता के चलते वो एक तालाब के किनारे एक वृक्ष पर पडाव डालने लगा। जिस वृक्ष पर उसने पड़ाव डाला वो बेल वृक्ष था। इस वृक्ष के नीचे शिवलिंग था। वो शिवलिंग बेलपत्रो से पूरी तरह ढका हुआ था जिसके बारे में शिकारी अनजान था।
जब वो अपना पड़ाव बना रहा था तब उसने कुछ टहनियां तोड़ी। वो संयोग से शिवलिंग पर जा गिरी। टहनियों के साथ बेलपत्र भी शिवलिंग पर चढ़ गए। शिकारी भूख प्यासा था और उसने शिवलिंग पर बेलपत्र में चढ़ा दिए। इस तरह उसका व्रत पूर्ण हो गया और उसको पता चला भी नही चला।
रात का एक पहर बीतने पर तालाब पर एक गर्भवती मृगी पानी पीने आई। शिकारी ने जैसे उस मृगी पर निशाना साधा, मृगी बोली, मैं गर्भिणी हूँ। जल्द ही प्रसव करने वाली हूँ। तुम मेरी हत्या करके एक साथ जो जीवो की हत्या कर दोगे। यह ठीक नही है। मैं अपने बच्चे को जन्म देने के बाद तुम्हारे पास आ जाउंगी। उस वक्त तुम मुझे मार देना। उसकी यह बात सुनकर शिकारी ने अपनी प्रत्यंचा ढीले करी और वो मृगी कही झाड़ियो में गम हो गई।
थोड़ी देर बाद वहां से एक और मृगी निकली। शिकारी खुश हो गया कि वो अब वो इसका शिकार करेगा। जैसे ही वो उसका शिकार करने लगा तब मृगी बोली मैं अभी अभी ऋतू से निवृत हुई होकर आई हूँ। मैं अपने प्रिय को खोज रही हूँ। मैं शीघ्र ही अपने पति से मिलकर वापिस आती हूँ।
शिकारी ने उसे जाने दिया लेकिन वो चिंता करने लगा कि अभी तक उसने एक भी शिकार नही किया।रात का आखरी पहर था तब वहां से एक मृगी अपने बच्चो के साथ जा रही थी। शिकारी खुश हो गया और उसका शिकार करने ही वाला था कि मृगी भोली मैं अपने बच्चो को उनके पिता के पास छोडकर वापिस आती हूँ। मुझे अभी मत मारो।
शिकारी पहले तो हंसा और फिर बोला कि मैं मुर्ख नही हूँ कि अपना शिकार छोड़ दूँ। मैंने पहले भी अपने दो शिकार को जाने दे चूका हूँ। मेरे बच्चे घर पर भूखे होंगे। मृगी ने बोला कि जिस तरह तुम्हे अपने बच्चो की चिंता है और उनके लिए ममता सता रही है उसी तरह मुझे भी अपने बच्चो की चिंता सता रही है। मैंने अपने बच्चो के लिए जीवन दान थोड़ी देर के लिए मांग रही हूँ। मेरा विश्वास करो, मैं बच्चो को उनके पिता के हवाले करके वापिस आ जाऊँगी।
शिकारी को दया आ गयी और उसने उसे जाने दिया। शिकारी अपने शिकार का इंतज़ार कर रहा था और बेचैनी में नीचे बेलपत्र फेकता गया। सुबह होने वाली थी कि एक तंदरुस्त मृग वहां से निकला। उसे देख शिकारी खुश हो गया। उसने सोचा वो इस बार शिकार जरुर करेगा। जब शिकारी शिकार करने ही वाला था तब मृग ने नम्र स्वर में बोला कि ये पार्थ, अगर तुमने मुझे पहले आई तीन मृगियो और बच्चो का शिकार कर लिया है तो मेरा भी शिकार कर लो ताकि उनका वियाग मुझे न सहना पड़े।
मैं उन तीनो मृगियो का पति हूँ और उन बच्चो का पिता। अगर तुमने उन सभी को जीवन दान दिया है तो मुझे थोड़ी देर के लिए जीवन दान दे दो।मैं अपनी पत्नियों और बच्चो से मिलकर वापिस आता हूँ।
मृग की बातो ने शिकारी के आगे उससे पहले हुई सारी घटनाएं याद आ गई।उसने पूरी बात मृग को बता दी। उसकी बात सुनकर मृग ने कहा, मेरी पत्नियों ने जो प्रतिज्ञाएँ की हैं वो मेरे मर जाने के कारण पूरी नही हो पाएगी। जिस तरह तुमने उन तीनो पर विश्वास करके उन्हें जाने दिया उसी तरह मुझ पर भी विश्वास करे। मैं उन तीनो को अपने साथ शीघ्र लेकर आता हूँ। शिकारी ने उसे भी जाने दिया।
शिकारी ने रात्रि जागरण किया, उपवास भी किया और शिवलिंग पर बेलपत्र भी चढाए। शिवरात्रि के व्रत के कारण उसका मन निर्मल हो गया और उसके मन में शिव शक्ति का वास हो गया। मन में निर्मलता आते ही उसके हाथ से तीर कमान छूट गया। भगवान भोलेनाथ की कृपा से उसके मन में करुणा भर गई। उसके मन में पहले किए सारे शिकारों और अपनी गलतियो का एहसास जाग गया।
कुछ देर बाद मृग अपने कहे अनुसार अपने पूरे परिवार को लेकर शिकारी के सामने आ गया। शिकारी जंगली जानवरों की सात्विकता, सत्यता और प्रेम भावना से प्रभावित हुआ और उसे ग्लानि होने लगी। उसकी आँखों में आंसू आ गए। उसने अब शिकार न करने का फैसला किया और उसने अब से जीव हत्या न करने का फैसला कर लिया। देव लोक से सभी इस घटना को देख रहे थे। सभी ने घटने के बाद पुष्प वर्षा की और मृग का परिवार और शिकारी सभी को मोक्ष प्राप्त हुआ।
जब यमदूत मृत्यु काल में उनके जीव को लेने गए तब शिवगणों ने उन्हें लौटा दिया और शिकारी को वो शिवलोक लेकर गए। भोलेनाथ के आशीर्वाद से शिकारी अगले जन्म में राजा चंद्रभानु बना और अपने पिछले जन्म की घटना को याद रखा पाया। पिछले जन्म की घटना से उसे महाशिवरात्रि का महत्व समझ आया और उसने अपने इस जन्म में इस व्रत का और mahashivratri puja पूर्ण विधि से पालन किया।
महाशिवरात्रि व्रत नियम (Mahashivratri Puja Rules)
त्रयोदशी के दिन से ही शिवरात्रि के व्रत की शुरुवात हो जाती है।Mahashivratri Puja के दिन से सात्विक आहार लेना शुरू कर देना चाहिए। कई लोग तो इसी दिन से व्रत शुरू कर देते हैं। इस दिन शिवरात्रि के पूजन का संकल्प लिया जाता है और फिर शिवलिंग को धतुरा, भांग, बेर, गन्ना और चन्दन अर्पित किया जाता है।
स्त्रियाँ माता के चरणों में सुहाग की निशानियाँ अर्पित करती है और पूरा दिन उपवास किया जाता है। Mahashivratri Puja के दिन अन्न नही खाया जाता, सिर्फ फलाहार किया जाता है। इस दिन नमक भी नही खाया जाता है। अगर खाना भी चाहते हैं तो सेंध नमक इस्तेमाल करे।
- Mahashivratri Puja के दिन अन्न यानी चावल, गेंहूँ, मैदा, बेसन आदि का सेवन न करे।
- इस दिन मांसाहारी भोजन से दूर रहना चाहिए और न हे मदिरा का सेवन करना चाहिए।
- व्रत करने वालो को इस दिन दोपहर में सोना नही चाहिए। शास्त्रानुसार इस दिन अगर सोया जाए तो फल नही मिलता।
- Mahashivratri Puja के दिन ब्रह्मचार्य धर्म का पालन करे।
- Mahashivratri Puja के दिन किसी से झगडा न करे और न ही अपशब्द का इस्तेमाल करे।
- आप दूध, चाय पी सकते हैं और फल खा सकते हैं।
- Mahashivratri Puja के दिन हो सके तो नमक न खाए और अगर फीका नही खा पाते तो सेंधा नमक इस्तेमाल करे।
- Mahashivratri Puja के दिन रात्रि जागरण करना फलदायी माना जाता है लेकिन यदि आप ऐसा नही पा रहे तो सिरहाने तुलसी का पत्ता रखकर सो जाए। तुलसी का पत्ता दिन में ही तोडकर रख ले। रात को तुलसी के पत्ते न तोड़े।
- शिवजी पर तुलसी न चढ़ाएं और न ही जलाभिषेक के लिए शंख का इस्तेमाल करे।
- उन्हें कभी भी खंडित हल्दी, अक्षत या कुम्कुम अर्पित न करे।
- शिवजी को अर्पित किया गया भोग ग्रहण नही करना चाहिए।
- पूजा के बाद शिवलिंग की पूरी परिक्रमा नही करे। जहाँ से शिवजी को जल चढाया गया जल बहता है उसे कभी भी न लांघे।
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