भारत एक ऐसा महान देश है, जहां पर शूरवीरों की कोई कमी नहीं है। इतिहास के पन्नों को यदि उठाकर देखें तो ऐसे कई महान योद्धा मिल जायेंगे जिनका लोहा दुनिया आज भी मानती है और इनकी वीरता का डंका दूर दूर तक बजा करता था। महाराणा प्रताप भी एक ऐसे ही योद्धा हैं जिनके पराक्रम की गाथा इतिहास के पन्नों पर अमर है।
महाराणा प्रताप का इतिहास (history of Maharana Pratap in hindi) जानने के लिए लोग आज भी उत्सुक रहते है। महाराणा प्रताप का इतिहास (history of maharana pratap in hindi) इसको लेकर कई फिल्में, सीरियल्स और पुस्तकें भी लिखी गयी है तथा आज भी लोग उनकी गाथाओं को बड़ी उत्सुकता से सुनते और देखते है।
यदि आप भी जानना चाहते है कि महाराणा प्रताप कौन थे और उन्होंने अपनी मातृभूमि के लिए किस तरह अपना योगदान दिया ? तो इस लेख के जरिये आपको इसकी जानकारी मिल सकेगी। जानते है महाराणा प्रताप का इतिहास (history of Maharana Pratap in hindi) विस्तार से।
महाराणा प्रताप (Maharana Pratap)
महाराणा प्रताप का इतिहास (history of Maharana Pratap in hindi) पराक्रम, शौर्य और साहस से भरा हुआ है। महाराणा प्रताप युद्ध कौशल में निपुण थे जिसके चलते उन्होंने कई युद्ध जीते। वह जिस भी कार्य को करने का संकल्प लेते, उसे पूरा किये बिना पीछे नहीं हटते थे। महाराणा प्रताप का इतिहास जानने से पहले यह जान लेते है कि वह कौन थे ? और कहाँ राज्य करते थे ?
महाराणा प्रताप कौन थे? Maharana Pratap Kaun The?
महाराणा प्रताप उदयपुर मेवाड़ में सिसोदिया राजवंश के राजा थे, जो अपनी वीरता और शौर्य के लिए जाने जाते थे। महाराणा प्रताप ने अपने युद्ध कौशल से मुगलों को अनेकों बार पराजित किया है ।
महाराणा प्रताप के शासन काल में दिल्ली पर अकबर का शासन था। अकबर ने कई बार राजा प्रताप को अपने अधीन करने का प्रयास किया और इस कार्य के लिए शांतिदूतों को भी महाराणा प्रताप के पास भेजा, परन्तु महाराणा प्रताप ने अकबर का प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया। जिसके चलते उन्हें कई संघर्षो का सामना भी करना पड़ा, पर उन्होंने अपने जीवन काल में कभी भी अकबर की अधीनता को स्वीकार नहीं किया।
महाराणा प्रताप का इतिहास (History Maharana Pratap In Hindi)
महाराणा प्रताप का इतिहास (history of Maharana Pratap in hindi) बहुत ही रोचक है। लोग उनके इतिहास को जानने के लिए सदैव जिज्ञासु रहते है। जानते है महाराणा प्रताप का इतिहास क्या था ?
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महाराणा प्रताप का जन्म और उनके माता पिता
राजस्थान के कुंभलगढ़ दुर्ग में महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 को मेवाड़ राजघराने में हुआ था। बचपन में उन्हें प्यार से कीका कहकर पुकारते थे। महाराणा प्रताप के पिता का नाम उदय सिंह था और माता का नाम रानी जयवंता बाई था।
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महाराणा प्रताप के कुल देवता
एकलिंग महादेव उनके कुलदेवता हैं, जिन पर उन्हें पूर्ण आस्था थी। महाराणा प्रताप अपने कुलदेवता एकलिंग महादेव जी का प्रण लेकर ही अनेक कार्य किया करते थे। राजस्थान के उदयपुर में एकलिंग महादेव का मंदिर है।
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राज्याभिषेक
फरवरी 28, 1572 को गोगुंदा में महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक हुआ था तथा वे मेवाड़ के 13वें राजा थे।
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महाराणा प्रताप का परिवार
महाराणा प्रताप ने 11 शादियाँ की थी, जिससे उन्हें 17 पुत्र और 5 पुत्रियाँ हुई थी।
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महाराणा प्रताप द्वारा धारण किये जाने वाले ढाल और तलवार
महाराणा प्रताप का इतिहास (history of Maharana Pratap in hindi) में उनके द्वारा धारण किये गए शस्त्रों को जानकर लोग अचंभित हो जाते है। महाराणा प्रताप का वजन करीब 110 किलोग्राम था और उनका कद साढ़े सात फुट था। इसके बावजूद वह 72 किलोग्राम का सुरक्षा कवच पहनते थे और वह जो भाला लेते थे, उसका वजन 80 किलोग्राम था।
अनुमान लगाया जाए तो उनके कवच, ढाल और तलवार का कुल वजन 200 किलोग्राम से भी ज्यादा था। जब भी वह युद्ध पर जाते तो अपने साथ 200 किलोग्राम से भी अधिक का वजन रखते थे। माना जाता है कि महाराणा प्रताप सबसे अधिक वजन के शस्त्रों द्वारा युद्ध करने वाले योद्धाओं में से एक है।
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महाराणा प्रताप का घोड़ा चेतक
महाराणा प्रताप का इतिहास (history of Maharana Pratap in hindi) में उनका सबसे प्रिय घोड़ा चेतक था। उनके वफादार घोड़े चेतक का नाम भी इतिहास में अमर है। चेतक सबसे तेज दौड़ने और सबसे ऊंची छलाँग लगाने वाले घोड़ों में जाना जाता है। चेतक ने हल्दीघाटी के युद्ध के दौरान एक बड़े नाले को पार कर महाराणा प्रताप की जान बचायी थी। यह नाला इतना बड़ा था कि मुग़ल सैनिक इसे पार नहीं कर सके थे। चेतक ने इस नाले को पार कर अपना नाम इतिहास के पन्नों पर दर्ज करा लिया।
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महाराणा प्रताप की मातृभूमि के प्रति निष्ठा
महाराणा प्रताप का इतिहास (history of Maharana Pratap in hindi) की बात की जाए तो महाराणा प्रताप अपने मातृभूमि के लिए मर मिटने को तत्पर रहते थे। महाराणा प्रताप जिस समय राजा बने, उस समय मेवाड़ राज्य की दशा अच्छी नहीं थी। राज्य शक्तिहीन था। अकबर ने मेवाड़ राज्य को उतर पूर्व व् पश्चिम से घेर लिया था।
अकबर मेवाड़ राज्य को अपने अधीन बनाना चाहता था जिस लिए वह चारो तरफ से महाराणा प्रताप पर दबाब डालने का प्रयास कर रहा था। महाराण प्रताप का सौतेला भाई जगमाल सिंह गद्दी के लालच में अकबर से मिल चुका था। महाराणा प्रताप के पास मेवाड़ का बहुत ही संकुचित राज्य ही बचा था, उसके बाद भी उन्होंने अकबर के सामने घुटने नहीं टेके बल्कि उसका जमकर मुकाबला किया।
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हल्दी घाटी का ऐतिहासिक युद्ध
महाराणा प्रताप का इतिहास (history of Maharana Pratap in hindi) में हल्दी घाटी के युद्ध को आज भी याद किया जाता है। 18 जून 1576 के दिन अकबर और महाराणा प्रताप के बीच हुआ युद्ध इतिहास के पन्नों पर अमर है। यह युद्ध गोगुंदा नामक स्थान पर एक घाटी में हुआ तथा इसी घाटी को हल्दी घाटी कहते है। महाराणा प्रताप अपनी एक छोटी सी टुकड़ी के साथ अकबर की विशाल सेना से युद्ध करने आये थे, उसके बाद भी उन्होंने अपनी युद्धनीति से मुग़ल सैनिकों को धूल चटाई थी। इस युद्ध में महाराण प्रताप भी घायल हुए थे और वह चेतक की सहायता से घाटी की पहाड़ियों में छुपने में सफल हुए।
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घास द्वारा निर्मित रोटी बनी महाराणा प्रताप का भोजन
हल्दीघाटी के युद्ध के बाद महाराणा प्रताप को अपने परिवार के साथ कुछ समय जंगलों में गुजारना पड़ा था, जहाँ उन्हें अपने परिवार के साथ घास द्वारा निर्मित रोटी खानी पड़ी और पोखरों का पानी पीकर जीवन यापन करना पड़ा।
परन्तु कठिन परिस्थियों में भी महाराणा प्रताप ने अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की और जंगलों में रहकर उन्होंने छापामार युद्ध कला भी सीखी, जिसका प्रयोग कर उन्होंने कई बार मुगलों को धूल चटाई। कई राज्यों ने उन्हें अपने राज्य में आश्रय देने के लिए आग्रह भी किया लेकिन महाराणा प्रताप ने प्रण लिया कि जब तक मेवाड़ मुगलों से आज़ाद नहीं होता वह स्वादिष्ट भोजन नहीं करेंगे ।
यह था महाराणा प्रताप का इतिहास (history of Maharana Pratap in hindi)। आशा है आपको महाराणा प्रताप के विषय में उपरोक्त जानकारी पसंद आयी होगी। महाराणा प्रताप जैसे प्रतापी राजा को इतिहास सदैव याद करता रहेगा।
Frequently Asked Questions
Question 1: महाराणा प्रताप का पूरा नाम क्या है ?
महाराणा प्रताप सिंह सिसोदिया महाराणा प्रताप का पूरा नाम है।
Question 2: महाराणा प्रताप की मृत्यु कब और कैसे हुयी हुयी ?
महाराणा प्रपात की मृत्यु 29 जनवरी 1597 को राजधानी चावंड में हुई थी। बताया जाता है कि जब वह धनुष की डोर को खींच रहे थे तो उनकी आंत में चोट लग गयी। जिस कारण उनकी मृत्यु हुयी।
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