भारत वो देश है जिसकी कला और संस्कृति प्राचीन काल से ही बहुत उन्नत और विकसित रही है। संगीत और नृत्य इस उन्नत संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा रहे हैं। देवो के देव महादेव को नटराज कहा जाता है जिसका अर्थ है महादेव नृत्य के राजा हैं। इतना ही नही पुरातत्व विभाग को अनगिनत जगहों मोहनजोदड़ो और हड़प्पा काल के समय की कई ऐसी कलाकृतियाँ मिली हैं जिससे ये साबित होता है कि भारत में नृत्य कला प्राचीन काल से चली आ रही है। कई दंतकथाओ और पौराणिक कथाओं में भारतीय शास्त्रीय नृत्य (shastriya nritya) को धर्म का अभिन्न हिस्सा माना गया है।
शास्त्रीय नृत्य क्या है? Shastriya Nritya kya hai?
नृत्य वो कला है जिसमें कहानी या विषय को ताल और लय से व्यक्त किया जाता है। शास्त्रीय नृत्य कला का वो स्वरुप है जिसमें भावो से और विभिन्न मुद्राओं से प्राचीन धर्म और परंपराओ को प्रस्तुत किया जाता है। लगभग सभी शास्त्रीय नृत्य (shastriya nritya) कला हिंदू पौराणिक कथाओं को पेश करती हैं। हर नृत्य अपने अपने क्षेत्र और परम्पराओ का प्रतिनिधित्व करते हैं।
ये नृत्य कला नाट्य सस्त्र में लिखित सभी नियमों का सख्ती से अनुसरण करते हैं और उनकी कला उनके नियमानुसार ही प्रस्तुत किए जाते है। शास्त्रीय नृत्य तीन घटकों से बना है। पहला है नाट्य, दूसरा है नृत्ता और तीसरा है नृत्य। नाट्य अर्थ नाटकीय रूप, नृत्ता अर्थात नृत्य की गति और नृत्य यानी पैरो की गति, स्तिथि और हावभाव से परंपरा का सजीव चित्रण।
शास्त्रीय नृत्य के 9 रस हैं जैसे शृंगार, करुणा, हंसी, वीर, रौद्र, बिभत्स, भयानक ,शांत, अदभुत। श्रृंगार यानी प्रेम, करुना यानी दुःख, हंसी यानी ख़ुशी या विनोदी, वीर यानी वीरता, रौद्र यानी गुस्सा या क्रोध, विभत्स यानी द्वेष, घृणा, भयानक यानी डर, भय, शांत यानी शांति और अद्भुत यानी अनोखा या आश्चर्य।
8 लोकप्रिय भारत के शास्त्रीय नृत्य List
भारत की उन्नत शास्त्रीय नृत्य कला के 8 रूप है। हमारे देश में 8 तरह के शास्त्रीय नृत्य (shastriya nritya) किए जाते हैं जिसका सम्बन्ध अलग अलग राज्य से है। सभी एक दूसरे से अलग है लेकिन उसकी जड़े हमारी प्राचीन परपराओ से जुड़े हैं।
आइये जानते है भारत के शास्त्रीय नृत्य (Bharat ke shastriya nritya) के बारे में जो हमारी संस्कृति की महानता साबित करती है:
1) भरतनाट्यम (Bharatnatyam)
भरतनाट्यम किस राज्य का है? Tamil Nadu
भरतनाट्यम एक प्रमुख शास्त्रीय नृत्य (shastriya nritya) है। ये दक्षिण भारत में स्थित राज तमिलनाडु में किया जाता है। इसकी शुरुवात मंदिरों से हुई। इस नृत्य को पहले देवदासियाँ मंदिरों में भगवान के लिए करती थी। इस नृत्य को पहले दासी अट्टम, सादिर और तन्जातवूरनाट्यम के नाम से पुकारा जाता था। ये ऐसा नृत्य हैं जिसे सिर्फ एक स्त्री करती थी। ये 2000 साल पुराना शास्त्रीय नृत्य है और ये नृत्य नाट्य शास्त्र पर आधारित होता है।
इतिहासकर्ताओँ के अनुसार ये कला चोल काल और पल्लव काल में बहुत उन्नत थी। इतना ही नही 19वीं सदी में मराठों और पाण्ड्य राजाओं द्वारा भी सराहा गया। 19वीं सदी तक ये मंदिरों में होता रहा लेकिन देवदासी अधिनियम के 1927 में लागू होने के बाद ये बैन कर दिया गया। लेकिन कला कहाँ रखने वाली है। ई कृष्णा अय्यर और रुक्मिणी देवी अरुण्डेल के प्रयासों से ये फिर से अस्तित्व में आई।
कलाक्षेत्र अकादमी जो एक भरतनाट्यम की प्रशिक्षण संस्था है, उसकी शुरुआत 1936 में हुई। यहाँ से इस नृत्य ने फिर से देश और विदेश में लोकप्रियता हासिल करना शुरू कर दिया। भरतनाट्यम में नाम कमाने वाले कुछ कलाकार हैं – रुक्मिणी देवी, मृणालिनी साराभाई, पद्मा सुब्रह्मणम, सी वी चंद्रशेखर, नटराज राम कृष्ण आदि।
2) कत्थक नृत्य (Kathak)
कत्थक नृत्य कहाँ का है? Uttar Pradesh and Rajasthan
उत्तर भारत का प्रसिद्ध शास्त्रीय नृत्य (shastriya nritya) है कत्थक। ये राजस्थान, उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश में चलन में है और इसके भी अलग अलग रूप है। जयपुर राजस्थान, बनारस और लखनऊ में किए जाने वाले कत्थक का रूप अलग अलग है। कत्थक शब्द संस्कृत से बना है। कत्थक का अर्थ है किसी कहानी को नृत्य में भाव और मुद्राओं से प्रस्तुत करना। मुग़ल शासको के समय कत्थक बहुत पसंद किया जाता है। ये राजाओं के दरबार की शोभा बढाता था।
इस नृत्य को करने वाले कलाकार घुंघरूओं को पहनकर अपने पैरो की गति और हाथो और आँखों की हावभाव से नृत्य करते हैं। इस शैली के प्रमुख घराने हैं लखनऊ घराना, जयपुर घराना, रायगढ़ घराना और वाराणसी घराना। शंभू महाराज, बिरजू महाराज, लच्छू महाराज, हजारी अग्रवाल, सितारादेवी, मालविका शजर जैसे कई कत्थक कलाकार हैं जिन्होंने देश विदेश में कत्थक को एक मुकाम दिया।
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3) कथकली नृत्य (Kathakali)
कथकली किस राज्य का है? Kerela
ये शास्त्रीय नृत्य (shastriya nritya) केरल राज्य का प्रमुख नृत्य हैं। कथकली दो शब्दों से मिलकर बना है और वो दो शब्द हैं कथा और कलि। कथा यानी कहानी और कलि यानी कला। कथकली का सबसे आकर्षक स्वरुप है उनकी वेशभूषा और उनका श्रृंगार का तरीका। वो सभी नृत्यों से अलग है जिसमें नृतक बहुत भारी वेशभूषा पहनते हैं। इस कला से कलाकार रामायण, महाभारत और पौराणिक कथाओ को अपने नृत्य के जरिए दिखाते हैं।
ये नृत्य स्त्री और पुरुष दोनों करते हैं लेकिन इसमें पुरुष ज्यादा होते हैं। ज्यादातर महिलाओं का किरदार निभाने के लिए पुरुष ही उनकी वेशभूषा पहनकर नृत्य करते है। इसमें ज्यादातर देव और राक्षस के बीच होने वाले युद्ध को नृत्य के जरिए प्रस्तुत किया जाता है। कलामंडलम केसवन नंबूदरी, कल्लमंडलम वसु पिशारोडी, गुरुगोपालशंकर, रागिनी देवी, कृष्णा कुट्टी, उदयशंकर आदि ने कथकली में खूब नाम कमाया है।
4) कुचिपुड़ी (Kuchipudi)
कुचिपुड़ी किस राज्य का है? Andhra Pradesh
ये शास्त्रीय नृत्य (shastriya nritya) आंध्र प्रदेश राज्य में किया जाता है और इस नृत्य का कुचिपुड़ी नाम कुचिपुड़ी गाँव से मिला है। पहले ये सिर्फ पुरुषों द्वारा किया जाता था जो ब्राह्मण समुदाय के होते थे और कुचिपुड़ी गाँव में रहने वाले ब्राह्मण इसका रोजाना अभ्यास करते थे। इसे ‘भगवथालु’ नाम से भी जाना जाता है। इस नृत्य में सिर्फ पुरुष ही होते थे, महिलाएं इस नृत्य का हिस्सा नही होती थी। लेकिन जब रागिनी देवी और बाला सरस्वती जैसे कलाकार आए जिन्होंने कुचिपुड़ी नृत्य कला में महिलाओं को शामिल करना शुरू किया। उनसे प्रेरित होकर कई स्त्रियों ने कुचिपुड़ी सीखा।
पहले स्त्री का अभिनय भी पुरुष ही करते थे लेकिन आज महिलाएं पुरुषो का अभिनय कर रही है। लक्ष्मीनारायण शास्त्री जैसे कलाकार ने कुचिपुड़ी को लोकप्रिय बनाया। इस नृत्य की खासियत है नृत्य का वो हिस्सा जिसमें थाली पर कलाकार खड़े होकर नृत्य करते हैं। लक्ष्मी नारायण शास्त्री, भावना रेड्डी, राजा और राधा रेड्डी, मंजू भार्गवी, आदि प्रमुख कुचिपुड़ी कलाकार है।
5) मोहिनीअट्टम (Mohiniyattam)
मोहिनीअट्टम किस राज्य का है? Kerela
ये केरल के प्रसिद्ध शास्त्रीय नृत्य (shastriya nritya) में से एक है। महिनी शब्द से मोहिनीअट्टम नाम बनाया गया जिसका अर्थ है मन को मोहने वाली। इस नृत्य को भी देवदासियो ने मंदिरों में करना शुरू किया था। पौराणिक कथाओं के अनुसार मोहिनी भगवान विष्णु का अवतार है। कथा अनुसार जब राक्षसों और देवताओं में युद्ध हो रहा था तब राक्षसों ने अमृत पर कब्ज़ा कर लिया। तब विष्णु भगवान ने मोहिनी बनकर राक्षसों से अमृत प्राप्त करके देवताओं को दे दिया। एक और कथा है।
राक्षस भस्मासुर ने भोलेनाथ की तपस्या करके उनको खुश किया और उनसे वरदान में माँगा की वो जिसपर भी हाथ रखे वो भस्म हो जाए। शिवजी ने प्रसन्न होकर उसको वरदान दिया लेकिन वो शिवजी के पीछे ही उनको भस्म करने के लिए पीछे पढ़ गया तब विष्णु जी ने मोहिनी का रूप धरके बस्मसुर का हाथ स्वयं उसके सर पर रखवाकर उसको भस्म कर दिया।
इस नृत्य को स्त्रियाँ ही करती है। स्मिता राजन, भारती शिवाजी, कलामंडलम हिमायती, सुनंदा नायर आदि प्रमुख मोहिनीअट्टम कलाकार है।
6) ओडिसी (Odissi)
ओडिसी किस राज्य का है? Odisha
ये शास्त्रीय नृत्य (shastriya nritya) ओड़िसा का प्रमुख नृत्य है। इसे महिलाएं करती है और इस कला की उत्पत्ति भी देवदासी द्वारा ही हुई। इसे स्त्रियाँ ओड़िसा की मंदिरों में करती थी। इस नृत्य के कई प्रमाण कोणार्क, भुवनेश्वर और पुरी जैसे प्राचीन मंदिरों में मिलते हैं।
इस शास्त्रीय नृत्य (shastriya nritya) के जरिए भगवान विष्णु के अवतार की कहानियां दिखाई जाती हैं। संजुक्ता पाणिग्रही, अनीता बाबू, चित्रा कृष्णमूर्ति, मधुमिता राउत जैसे कलाकारों ने इस नृत्य कला को जीवंत रखा और लोकप्रिय बनाया।
7) मणिपुरी नृत्य (Manipuri)
मणिपुरी नृत्य किस राज्य का है? Manipur
मणिपुर राज्य का प्रमुख शास्त्रीय नृत्य (shastriya nritya) है मणिपुरी नृत्य। इसे जागोई नाम से भी जाना जाता है। इस नृत्य में राधा कृष्ण के प्रेम को नृत्य के जरिए दिखाया जाता है। ये नृत्य बाकी नृत्यों से थोडा अलग है। इसमें नृत्य की गति बहुत धीमी होती है। कालाकार अपनी कहानियां कोमलता से धीमे से प्रस्तुत करते हैं।
ऐसा माना जाता है कि कृष्णा अपनी प्रिय राधा के साथ मणिपुरी नृत्य करते थे। इसमें कलाकार पारंपरिक मणिपुरी गहने, सफ़ेद घूँघट और मलमल के पोषक पहनकर नृत्य करते है। हंजबा गुरु बिपिन सिंहा, गुरु चंद्रकांता सिंहा, कलाबती देवी, अम्बात सिंह आदि प्रमुख मणिपुरी नृत्य कलाकार है।
8) सत्त्रिया नृत्य (Sattriya)
सत्त्रिया नृत्य किस राज्य का है? Assam
ये असम राज्य का शास्त्रीय नृत्य (shastriya nritya) है। इस कला पर पहले पुरुषो का ही एकाधिकार था लेकिन समय के साथ कई महिला कलाकार भी इससे जुडी। पहले ये नृत्य वैष्णव मठों में ही किया जाता था। मठ से ही इसे सत्त्रिया नृत्य के नाम से जाना जाने लगा। इसे शास्त्रीय नृत्य के रूप में संगीत नाटक अकादमी द्वारा 15 नवंबर 2000 को मान्यता मिली। सुनील कोठारी, पासना महंत, बारिकेश्वर बारिकिया, मुख्तियार बारबिकार प्रमुख सत्त्रिया नृत्य कलाकार है।
शास्त्रीय नृत्य का महत्व
शास्त्रीय नृत्य मानवीय भावो को प्रकट करने का खुबसूरत जरिया है। इन नृत्यों की वजह से आज भी हम हमारी परंपरा और संस्कृति से जुड़े हुए हैं। शास्त्रीय नृत्य को करने वाले कलाकार अपने नृत्य से भगवान से जुड़ते हैं। उनके लिए ये एक पूजा है जिससे वो भगवान की आराधना करते है। शास्त्रीय नृत्य को साधना भी कहते हैं इसी कारण इन कलाओं को सीखने के लिए कलाकारों को बहुत हार्ड ट्रेनिंग लेनी होती है और कई सालो की तपस्या के बाद वो इस कला में पारंगत होते हैं।
इस कला से व्यक्ति सब्र करना सीखता है साथ ही उसकी एकाग्रता भी बढती है। इस नृत्य से व्यक्ति के शरीर और दिमाग का व्यायाम भी हो जाता है। व्यक्ति के दिमाग का हर हिस्सा विकसित हो जाता है और शरीर लचीला भी हो जाता है। ऐसा माना जाता है जो शास्त्रीय नृत्य में पारंगत हो जाता है वो हर तरह का शास्त्रीय नृत्य (shastriya nritya) आसानी से कर सकता है।
शास्त्रीय नृत्य और लोक नृत्य में अंतर
रोज़ की बोल चाल में हम शास्त्रीय नृत्य (shastriya nritya) और लोक नृत्य को एक की सन्दर्भ में इस्तेमाल करते है परन्तु दोनों नृत्य शैलियों में काफी अंतर है। आइये जानते है शास्त्रीय नृत्य और लोक नृत्य के प्रमुख अंतर।
- शास्त्रीय नृत्य की उत्पत्ति नाट्यशास्त्र से हुई है वही लोक नृत्य की उत्पत्ति विभिन्न क्षेत्रो में लोगों द्वारा की गयी। लोक नृत्य पर उनके रहन-सहन का बहुत प्रभाव होता है।
- किसी भी शास्त्रीय नृत्य को सीखने के लिए सालो की ट्रेनिंग की जरुरत होती है वही लोक नृत्य के लिए किसी भी ट्रेनिंग की जरुरत नही पड़ती।
- शास्त्रीय नृत्य में भाव, अभिनय और मुद्राओं का प्रमुख स्थान है वही लोक नृत्य ताकत, जोश और उमंग से किया जाता है।
- भारत में 8 तरह के शास्त्रीय नृत्य किए जाते हैं वही 30 से ज्यादा लोक नृत्य भारत में प्रसिद्ध हैं।
- शास्त्रीय नृत्य में ज्यादातर एक या कुछ लोग एक साथ नृत्य करते हैं जबकि लोक नृत्य में बहुत सारे लोग एक साथ मिलकर करते हैं। हालाँकि आजकल शास्त्रीय नृत्य (shastriya nritya) भी समूह में किया जाने लगा है।
आशा है आपको शास्त्रीय नृत्य (shastriya nritya) से सम्बन्धी सभी जानकारी प्राप्त हुई होगी। भारतवासी होने का हमारा एक कर्त्तव्य ये भी है की हम इन सांस्कृतिक नृत्य शैलियों को सुरक्षित रखें और अपनी आने वाली पीढ़ी को इन्हें सीखने की प्रेरणा दें।
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