राजयोग या अष्टांग योग ashtanga yoga in hindi के इस लेख में हम मुख्यतः स्वामी विवेकानंद की पुस्तक राजयोग पर चर्चा करेंगे। योग की कई शाखाएं हैं और कई प्रकार है, विद्वानों ने उन्हें अलग-अलग नाम भी दिए हैं। हिंदू व वैदिक शास्त्र कुल छह दर्शनों में विभक्त हैं, इन्हीं में से एक है “योग” या “राज योग”।
“योग” या “राज योग” मूलतः महर्षि पतंजलि के योग सूत्रों पर आधारित है, जिसकी सबसे अधिक चर्चा तब शुरू हुई, जब 19वीं शताब्दी में स्वामी विवेकानंद अमेरिका गए और न्यूयॉर्क में अपने शिष्यों के समक्ष योग की बारीकियों और गहराइयों पर आधारित व्याख्यान दिया। इन्हीं व्याख्यानों को संकलित करके एक पुस्तक का स्वरूप दिया गया जिसका नाम है “राजयोग”।
अष्टांग योग क्या है (Ashtanga Yoga In Hindi)
राजयोग या अष्टांग योग (ashtanga yoga in hindi) का शाब्दिक अर्थ है “योगों का राजा” अर्थात सभी प्रकार के योग प्रणालियों में सबसे श्रेष्ठ या उत्तम प्रणाली। भारत में जितने भी वेदमत पर आधारित ग्रंथ व दर्शन है, उन सभी का यही मानना है कि जीवन का एक ही लक्ष्य है और वह है पूर्णता को प्राप्त करके आत्मा को जीवन मृत्यु के चक्र से मुक्त कर लेना। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए स्वामी विवेकानंद के अनुसार जो सर्वश्रेष्ठ माध्यम है वही है राजयोग या अष्टांग योग (ashtanga yoga in hindi)।
राजयोग को योगों का राजा इसलिए भी कहा जाता है क्योंकि इसमें लगभग सभी प्रकार के योग प्रणालियों का कुछ अंश अवश्य ही मिल जाता है जिसकी वजह से यह प्रणाली सर्व सुलभ और सर्व सुगम बन जाती है।
स्वामी विवेकानंद जी ने राजयोग पुस्तक की भूमिका में पतंजलि के सूत्रों की महत्ता का वर्णन करते हुए स्वयं लिखा है कि –
“पातंजल सूत्र राजयोग का शास्त्र है और राजयोग पर सर्वोच्च प्रामाणिक ग्रंथ है। अन्यान्य दार्शनिकों का किसी-किसी दार्शनिक विषय में पतंजलि से मतभेद होने पर भी वे सभी निश्चित रूप से उनकी साधना प्रणाली का अनुमोदन करते हैं।” (राजयोग पुस्तक की भूमिका से)
राजयोग (ashtanga yoga in hindi) का अंतिम अंग समाधि है तथा स्वामी विवेकानंद के अनुसार समाधि प्रत्येक मनुष्य ही नहीं अपितु प्रत्येक प्राणी का भी अधिकार है। इसे निम्नतम प्राणी जैसे किट-पतंग से लेकर अत्यंत उन्नत देवता तक सभी कभी न कभी अवश्य प्राप्त करेंगे और जब किसी को यह अवस्था प्राप्त हो जाएगी, तभी वह सभी बन्धनों से मुक्त होगा।
अष्टांग योग (Ashtanga Yoga In Hindi) के कितने अंग है
राजयोग जिसे अष्टांग योग (ashtanga yoga in hindi) कहते हैं, का आधार पतंजलि के अष्टांग योगिक मार्ग पर आधारित है, इनके 8 अंग इस प्रकार है –
- यम
- नियम
- आसन
- प्राणायाम
- प्रत्याहार
- धारणा
- ध्यान
- समाधि
इसमें पहले दो अंग अर्थात यम और नियम सामाजिक तथा सांसारिक के साथ-साथ हमारे निजी व्यवहार में भी कुशलता और एकरूपता लाने में हमारी सहायता करते हैं, जबकि अन्य अंग हमारे आत्मिक, शारीरिक और मानसिक विक्षेपों को दूर करते हैं। इसलिए अगर हम साधना के उच्चतम शिखर अर्थात मुक्ति को प्राप्त करना चाहते हैं तो हमें इन आठों श्रेणियों से होकर गुजरना ही होगा और इनमें अपनी कुशलता लानी ही होगी।
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1) यम
अष्टांग योग (ashtanga yoga in hindi) का प्रथम अंग है यम, महर्षि पतंजलि ने इन यमों की परिगणना इस प्रकार की है –
“अहिंसासत्यास्तेयब्रह्मचर्यापरिग्रहाः यमाः।।” (योगसूत्र- 2.30)
अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य तथा अपरिग्रह – ये पाँच यम हैं।
(i) अहिंसा – मन, वचन और कर्म आदि से किसी के साथ हिंसा न करना, किसी का अहित न चाहना, सभी का सम्मान करना और सभी के लिए प्रेम का भाव रखना।
(ii) सत्य – जो चीज जैसी है उसे वैसा ही स्वीकार करना और वैसा ही बोलना।
(iii) अस्तेय – इसका शाब्दिक अर्थ है चोरी न करना, किसी चीज को प्राप्त करने के लिए आने वाले चोरी के भाव से भी दूर रहना।
(iv) ब्रह्मचर्य – शरीर के सभी सामर्थ्यों की संयम पूर्वक रक्षा करना, व्यभिचार से दूर रहना, इंद्रियों को अपने वश में रखना।
(v) अपरिग्रह – मन, वाणी व शरीर से अनावश्यक वस्तुओं व अनावश्यक विचारों को त्याग देना या उनका संग्रह न करना, सिर्फ उतना ही लेना और रखना जितने की जरूरत हो।
2) नियम
अष्टांग योग (ashtanga yoga in hindi) का दूसरा अंग है नियम, इसके बारे में महर्षि पतंजलि ने लिखा है –
“शौचसन्तोषतपस्वाध्यायेश्वरप्रणिधानानि नियमाः।” (योगसूत्र- 2.32)
नियम के भी 5 विभाग हैं – शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय और ईश्वर प्रणिधान।
(i) शौच – शरीर व मन की को पवित्र रखना ही शौच है। हमारा शरीर स्नान, सात्विक भोजन, मल त्याग इत्यादि से पवित्र होता है, तो वहीं मन राग-द्वेष के त्याग और अंतःकरण की शुद्धि से पवित्र होता है।
(ii) संतोष – अपना कर्म करते हुए जो भी फल प्राप्त हो, उसे ईश्वर कृपा समझकर उसी में संतुष्ट रहना और लालच न करना।
(iii) तप – सुख – दुःख, सर्दी – गर्मी आदि द्वन्दों में भी समभाव रखते हुए शरीर व मन को साध लेना।
(iv) स्वाध्याय – ज्ञान प्राप्ति के लिए धर्म शास्त्रों का विवेकपूर्ण अध्ययन करना, संतों के सानिध्य में सत्संग करना व सदविचारों का आदान प्रदान करना।
(v) ईश्वर प्रणिधान – ईश्वर की भक्ति करना, पूर्ण मनोयोग से ईश्वर को समर्पित होकर उनके नाम, रूप, गुण, लीला इत्यादि का श्रवण, उच्चारण, मनन और चिंतन करना।
यम और नियम के विषय में स्वामी विवेकानंद कहते हैं –
“यम और नियम चरित्र निर्माण के साधन है। इनको नींव बनाए बिना किसी तरह की योग साधना सिद्ध न होगी।” (राजयोग, द्वितीय अध्याय, पृष्ठ 17)
3) आसन
अष्टांग योग (ashtanga yoga in hindi) का तीसरा अंग है आसन, पतंजलि योग दर्शन के अनुसार शरीर की जिस स्थिति में रहते हुए सुख का अनुभव होता हो और उस शारीरिक स्थिति में स्थिरता पूर्वक अधिक देर तक सुख पूर्वक रहा जा सकता हो, उस स्थिति विशेष को आसन कहा जाता है।
आसन न केवल शरीर को लचीला बनाता है बल्कि यह शरीर की सक्रियता और मानसिक एकाग्रता को भी बेहतर करता है। यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि प्रत्येक व्यक्ति की शारीरिक संरचना में कुछ विभिन्नताएँ भी होती है। अतः उसे अपनी सुविधा के अनुसार ही आसन का चयन करना चाहिए। लेकिन कुछ ऐसी भी बातें हैं जो सभी के लिए अनिवार्य और आवश्यक है। स्वामी विवेकानंद जी इस विषय में कहते हैं –
“आसन के संबंध में इतना समझ लेना होगा कि मेरुदंड को सहज स्थिति में रखना आवश्यक है, ठीक से सीधा बैठना होगा – वक्ष, ग्रीवा और मस्तक सीधे और समुन्नत रहे, जिससे देह का सारा भार पसलियों पर पड़े।” (राजयोग , द्वितीय अध्याय , पृष्ठ – 18)
आसन के अनेक प्रकार हैं, जैसे मर्कटासन, मयूरासन, गोमुखासन इत्यादि। हालांकि, साधना में लंबे समय तक बैठने के लिए कुछ विशेष प्रकार के आसनों को ही उपयुक्त माना जाता है, जैसे सिद्धासन, पद्मासन इत्यादि।
जब तक बहुत उच्च अवस्था प्राप्त ना हो जाए तब तक प्रत्येक साधक को इन आसनों में नियमानुसार रोज बैठना पड़ता है और अंततः एक अवस्था आती है जब व्यक्ति इस आसन में पूर्णत: पारंगत हो जाता है, इस अवस्था को आसन सिद्धि कहते है।
4) प्राणायाम
अष्टांग योग (ashtanga yoga in hindi) का चौथा अंग है प्राणायाम, प्राणायाम दो शब्दों अर्थात प्राण और आयाम से मिलकर बना है। प्राण शब्द का अर्थ है – चेतना शक्ति और आयाम शब्द का अर्थ है – नियमन करना, संयम करना अर्थात लयबद्ध करना। अतः स्वामी विवेकानंद मानते हैं कि प्राणायाम का अर्थ है “सांसों को लयबद्ध करके प्राणों का संयम कर लेना”।
योगियों के अनुसार मानव शरीर में प्रमुख तीन सुक्ष्म नाड़ियां है, जिनसे होकर ऊर्जा समस्त शरीर के विभिन्न अंगों और नाड़ियों में प्रवाहित होती है। ये तीन नाड़ियां है – इडा, पिंगला और सुषुम्ना। साधारण मनुष्य में मुख्यतः इड़ा और पिंगला ही जागृत होती है और सुषुम्ना प्रायः निष्क्रिय अवस्था में ही रहती है। सुषुम्ना में शक्ति प्रवाह को हम कुंडलिनी जागरण भी कह सकते हैं, सुषुम्ना में शक्ति प्रभाव होने के साथ ही व्यक्ति में मन व चेतना के स्तर पर अनेक बदलाव होते हैं, जैसे एक-एक पर्दा हटता जा रहा हो और तब योगी इस जगत की सूक्ष्म या कारण रूप में उपलब्धि करते हैं।
प्राणायाम व अन्य साधनों के द्वारा इस नाड़ी को जागृत किया जा सकता है और चेतना के उच्च आयामों को महसूस किया जा सकता है। प्राणायाम से जब श्वास-प्रश्वास की गति को लयबद्ध या नियमित किया जाता है, तो शरीर के सारे परमाणु एक ही दिशा में गतिशील होने का प्रयत्न करते हैं, जिससे इड़ा और पिंगला में बह रही प्राण ऊर्जा भी सुषुम्ना में प्रवाहित होने लगती है, जिससे व्यक्ति एकाग्रचित्त और सभी द्वंदों व बंधनों से मुक्त हो जाता है।
प्राणायाम तीन प्रकार के हैं – पहला अधम, दूसरा मध्यम और तीसरा उत्तम। जिस प्राणायाम में बारह सेकंड तक वायु का पूरण किया जाता है, उसे अधम प्राणायाम कहा जाता है। इसी प्रकार जिस प्राणायाम में चौबीस व छत्तीस सेकंड तक वायु का पूरण किया जाता है, उन्हें क्रमशः मध्यम और उत्तम प्राणायाम कहा जाता है।
स्वामी विवेकानंद प्राणायाम के प्रभाव के विषय में कहते हैं –
“जो दिन में केवल एक या दो बार अभ्यास करेंगे, उनके शरीर और मन कुछ स्थिर हो जाएंगे और उनका स्वर मधुर हो जाएगा। परंतु जो कमर बांधकर साधना के लिए आगे बढ़ेंगे, उनकी कुंडलिनी जागृत हो जाएगी, उनके लिए प्रकृति नया रूप धारण कर लेगी, उनके लिए ज्ञान का द्वार खुल जाएगा।” (राजयोग, पंचम अध्याय, पृष्ठ – 57)
5) प्रत्याहार
अष्टांग योग (ashtanga yoga in hindi) के पांचवे अंग के रूप में प्रत्याहार को जानते हैं, प्राकृतिक तौर पर मनुष्य की चेतना बहिर्मुखी होती है, इसलिए हमारी इंद्रियां व मन हमें हजारों बाहरी विषयों में उलझाए रखती हैं और हम विषयों के दास बन जाते हैं। इस दासत्व के कारण मनुष्य अनेक प्रकार के दुष्कर्म करता है और बाद में उसके बुरे परिणाम भी भोगता है। अतः मन को नियंत्रित व संयमित करना और उसे विभिन्न इंद्रियों के साथ संयुक्त ना होने देना ही प्रत्याहार है।
स्वामी विवेकानंद इस विषय में कहते हैं –
“प्रत्याहार का अर्थ है एक ओर आहरण करना अर्थात खींचना। मन की बहिर्गति को रोककर इंद्रियों की अधीनता से मन को मुक्त करके उसे भीतर की ओर खींचना। इसमें सफल होने पर हम यथार्थ चरित्रवान होंगे, तभी और तभी समझेंगे कि हम मुक्ति के मार्ग में बहुत दूर बढ़ गए हैं, इससे पहले हम तो मशीन मात्र हैं।” (राजयोग, अध्याय – प्रत्याहार और धारणा, पृष्ठ – 64)
6) धारणा
धारणा अष्टांग योग (ashtanga yoga in hindi) का छठा अंग है, धारणा अर्थात अपने मन और चित्त को देह के भीतर या उसके बाहर किसी स्थान विशेष पर केंद्रित या धारण करना। धारणा धारण किया हुआ चित्त जैसी भी धारणा या कल्पना करता है, वैसा ही घटित होने लगता है। धारणा में किसी विशेष स्थान पर ध्यान लगाने की विधि के बारे में स्वामी विवेकानंद कहते हैं –
“मान लो ह्रदय के एक बिंदु में मन को धारण करना है। इसे कार्य में परिणत करना बड़ा कठिन है। अतः सहज उपाय यह है कि ह्रदय में एक पद्म(पुष्प) की भावना करो और कल्पना करो कि वह ज्योति से पूर्ण है – चारों ओर उस ज्योति की आभा बिखर रही है। उसी जगह मन की धारणा करो।” ( राजयोग, अध्याय – प्रत्याहार और धारणा, पृष्ठ – 66)
7) ध्यान
ध्यान एक विज्ञान है, जिसके अंतर्गत हम अपने चित्त्त को एकाग्र करने में सफल होते हैं तथा हमें अपनी मानसिक शक्तियों को एक स्थान पर केंद्रित करने में सहायता मिलती है। ध्यान से ध्येय की प्राप्ति होती है और हमारे सारे क्लेशों का नाश होता है। जिस प्रकार बाधा रहित क्षेत्र में दीपक का प्रकाश फैलता जाता है, ठीक उसी प्रकार ध्यान के नियमित अभ्यास से हमारी आत्मशुद्धि और आध्यात्मिक प्रगति होती जाती है।
स्वामी विवेकानंद ध्यान के विषय में कहते हैं –
” जब मन को देह के भीतर या उसके बाहर किसी स्थान में कुछ समय तक स्थिर रखने के निमित्त प्रशिक्षित किया जाता है, तब उसको उस दिशा में अविच्छन्न गति से प्रवाहित होने की शक्ति प्राप्त होती है। इस अवस्था का नाम है ध्यान। ” (राजयोग, अध्याय – ध्यान और समाधी, पृष्ठ – 70)
8) समाधि
अष्टांग योग (ashtanga yoga in hindi) का अंतिम अंग है समाधि,जब व्यक्ति सभी योग साधनाओं को करने के पश्चात मन को बाहरी वस्तुओं से हटाकर निरंतर ध्यान में लीन रहता है, वह समाधि की अवस्था होती है। ऐसी अवस्था में योगी को स्वयं का भान नहीं रहता और वह विभिन्न अनुभवों को प्राप्त करता है।
समाधि समयातीत होती है, अर्थात योगी को समय और काल का बोध नहीं रह जाता, लेकिन फिर भी वह चेतना के स्तर पर पूर्ण चैतन्य होता है। इस स्थिति में ‘ज्ञाता’ अर्थात जो जानने वाला है, ‘ज्ञेय’ अर्थात जो जानने की वस्तु है और ‘ज्ञान’ तीनों का ही भेद मिट जाता है और योगी स्थितप्रज्ञ अर्थात परम शांति, परम स्थिरता और परम जागृति की स्थिति को प्राप्त करता है। समाधि के विषय में स्वामी जी का कहना है –
“जब ध्यान शक्ति इतनी तीव्र हो जाती है कि मन अनुभूति के बाहरी भाग को छोड़कर केवल उसके अंतर्भाग या अर्थ की ओर एकाग्र हो जाता है, तब उस अवस्था को समाधि कहते हैं।” (राजयोग, अध्याय – ध्यान और समाधी, पृष्ठ – 70)
समाधि मानव चेतना की उच्चतम अवस्था है, जहां ‘मैं’ का बोध मिट जाता है, जीव के जीवभाव का लोप होता है तथा पूर्ण आनंद स्वरूप आत्मा और परमात्मा का बोध प्रकट होता है। इस अवस्था को ‘मोक्ष’ भी कहा जा सकता है, जो समस्त योग प्रणाली और प्रत्येक मानव जीवन का एकमात्र लक्ष्य है तथा जिसकी प्राप्ति के लिए प्रत्येक जीव माया के इस संसार में संघर्ष कर रहा है।
अष्टांग योग के लाभ
अष्टांग योग (ashtanga yoga in hindi) के अभ्यास से शारीरिक, मानसिक और आत्मिक उन्नति होती है, जो हमारे भीतर से अविद्या नष्ट करती है। अविद्या का नाश हो जाने से अंत:करण की अपवित्रता खत्म हो जाती है और आत्मज्ञान की प्राप्ति होती है। जैसे-जैसे साधक योगांगों का कुशलतापूर्वक अभ्यास करता है, वैसे-वैसे ही उसके चित्त की गंदगी साफ होती जाती है और मलिनता के खत्म होने से व्यक्ति के चित्त में ज्ञान की ज्योति जलती है। आइये जानते हैं अष्टांग योग (ashtanga yoga in hindi) के कुछ लाभ –
1) मानसिक लाभ – अष्टांग योग का निरंतर अभ्यास करने से आप तनाव, चिंता इत्यादि मानसिक रोगों से बच सकते हैं तथा मानसिक रूप से आपको शांति प्रदान करता है।
2) शारीरिक लाभ – अष्टांग योग (ashtanga yoga in hindi) से आपको सिर्फ मानसिक लाभ ही नहीं होते, अपितु यह शारीरिक ऊर्जा भी प्रदान करता है। इसके निरन्तर अभ्यास से साधक का शरीर मजबूत और लचीला होता है।
3) भावनात्मक लाभ – ऐसा कहा जाता है कि नकारात्मक भावनाओं से कई प्रकार की बीमारियां हो सकती है, अतः जब आप अष्टांग योग (ashtanga yoga in hindi) का निरंतर अभ्यास करते हैं, तो मानसिक शांति होने से भावनाओं पर नियंत्रण करना सीख जाते हैं, साथ ही आपका मन भी सकारात्मक ऊर्जा और विचारों से भर जाता है।
अष्टांग योग को योग का राजा इसीलिए कहा जाता है, क्योंकि इसका अभ्यास करने से मनुष्य को शारीरिक, मानसिक इत्यादि कई प्रकार के लाभ होते हैं। आशा है आपको अष्टांग योग (ashtanga yoga in hindi) के बारे में यह जानकारी अच्छी लगी होगी।
Frequently Asked Questions
Question 1: अष्टांग योग क्या अर्थ है? (Ashtanga Yoga In Hindi)
राजयोग या अष्टांग योग का शाब्दिक अर्थ है “योगों का राजा” अर्थात सभी प्रकार के योग प्रणालियों में सबसे श्रेष्ठ या उत्तम प्रणाली।
Question 2: अष्टांग योग (Ashtanga Yoga In Hindi) के कितने अंग है?
अष्टांग योग के 8 अंग इस प्रकार है – यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि।
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