जब भी कोई गुरु अपने शिष्य से पूछता है कि तुम्हें सामने क्या दिखाई दे रहा है, तब यदि शिष्य आस पास की वस्तुओं के नाम गिनाने लगता है; तब गुरु का एक ही जवाब होता है कि इधर उधर ध्यान मत भटकाओ सिर्फ अपने लक्ष्य पर ध्यान दो बिलकुल अर्जुन की तरह। क्या आप जानते हैं की पूरे महाभारत के दौरान अर्जुन के 12 नाम (Arjun ke 12 naam) मुख्य रूप से इस्तेमाल हुए हैं जैसे कुंती पुत्र, पार्थ आदि। अर्जुन के कितने नाम है (Arjun ke kitne naam hai) ये सवाल आज भी कई लोगो के मन में है, उनके इसी सवाल का जवाब लेकर आज हम आए हैं।
अर्जुन महाभारत काल का वो चरित्र है जिसे प्रत्येक व्यक्ति जानता है, क्योंकि अर्जुन आकर्षक व्यक्तित्व व कई गुणों के स्वामी थे। उन्हें उस समय का श्रेष्ठ धनुर्धर माना जाता था तथा वही वो वीर थे जिन्होंने स्वयंवर में अनेकों शूरवीरों को हराकर द्रौपदी से विवाह किया था। अर्जुन श्री कृष्ण के प्रिय सखा थे इसलिए श्री कृष्ण महाभारत युद्ध में उनके सारथी बने थे।
युद्ध भूमि में अपनी कुशलता और दक्षता दिखाने वाले महावीर और युद्धवीर हैं अर्जुन। कुरुक्षेत्र में अपने सामने अपने प्रियजनों और परिवार को देखकर बिना युद्ध के पराजय स्वीकारने वाले व्यक्ति हैं अर्जुन और कृष्ण के मुख और विराट रूप से श्रीमद्भगवद गीता का अनमोल ज्ञान पाने वाले हैं अर्जुन। अर्जुन माता कुंती और महाराजा पाण्डु के पुत्र थे।
अर्जुन का जन्म और दक्षताएं
माता कुंती ने पुत्र की कामना से ऋषि दुर्वासा की सेवा की थी, ऋषि ने प्रसन्न होकर उन्हें एक मन्त्र दिया और उन्हें इंद्र देव का आह्वान करने को कहा। माता कुंती ने इंद्र देव का आह्वान किया और उनके आशीर्वाद से उन्हें तेजस्वी और प्रतापी पुत्र अर्जुन के रूप में प्राप्त हुए। वे पांच भाइयों युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव में मंझले भाई थे। उन्होंने गुरु द्रोण से धनुर्विद्या सीखी थी तथा वो इतने परिश्रमी थे कि बाण चलाने में दक्षता प्राप्त करने के लिए दिन में ही नहीं बल्कि रात के अँधेरे में भी अभ्यास किया करते थे। अर्जुन को सबसे बड़ा गुरुभक्त भी माना जाता है।
अर्जुन के पास कई कुशलताएँ थे, उनमें से ही एक थी धनुर्विद्या, उन्हें धनुर्विद्या में पराजित करना किसी के बस का न था। एक बार गुरुकुल में गुरु द्रोण ने सभी विद्यार्थियों को एक पेड़ पर बैठी नकली चिड़िया की आँख पर निशाना लगाने को कहा। सभी ने प्रयास किया लेकिन इसमें सिर्फ अर्जुन ही सफल हुए क्यूंकि उनका पूरा ध्यान सिर्फ और सिर्फ चिड़िया की आंख पर था। वो अपने गुरु के सबसे प्रिय शिष्य थे, उन्होंने एक बार गुरु को मगरमच्छ से भी बचाया था। उन्होंने भोलेनाथ को प्रसन्न करने उनसे दिव्यास्त्र का आशीर्वाद पाया था।
अर्जुन एक बार इंद्र के साथ स्वर्ग गए थे, वहां पर उन्होंने गायन, वादन और नृत्य देखा जिससे वो इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने वहीं कुछ समय रहकर सीखने का मन बना लिया। तब वहां अर्जुन के आकर्षक व्यक्तित्व को देखकर अप्सरा उर्वशी उनसे प्रेम करने लगी लेकिन अर्जुन ने उनका प्रेम ठुकरा दिया, जिस वजह से उर्वशी ने क्रोध में आकर उन्हें नपुंसक होने का श्राप दे दिया और वो एक साल तक वृहन्नला बनकर रहे। उर्वशी का ये श्राप उनके अज्ञातवास के दौरान उनके बहुत काम आया।
अर्जुन की श्रेष्ठता तो हमने जान ली पर अब जानते है अर्जुन के 12 नाम (Arjun ke 12 naam) के बारे में।
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अर्जुन के 12 नाम (Arjun ke 12 naam)
क्या आप भी अर्जुन के 12 नाम (Arjun ke 12 naam) के बारे में जानना चाहते हैं? क्या आपको पता है कि अर्जुन के कितने नाम है? महाभारत के महारथी प्रतापी अर्जुन को कई नामों से पुकारा जाता है और इन सभी Arjun ke naam से रोचक प्रसंग जुड़े हैं। आइये जानते है :
1) धनंजय
अर्जुन के 12 नाम (Arjun ke 12 naam) में से पहला नाम है धनंजय। ये नाम उन्हें राजसूय यज्ञ के समय मिला जब उन्होंने यज्ञ में आए सभी राजाओं को हरा दिया था और तब उन्हें सभी से जीतने के लिए धनंजय नाम से पुकारा गया।
2) पार्थ
अर्जुन का दूसरा नाम है पार्थ जो श्री कृष्णा उन्हें प्रेम से बुलाते थे।। अर्जुन की माता कुंती का एक नाम पृथा भी था जिस कारण उन्हें पार्थ के नाम से पुकारा जाता था।
3) कौन्तेय
अर्जुन के 12 नाम (Arjun ke 12 naam) में से तीसरा नाम है कौन्तेय। चूँकि अर्जुन की माँ का नाम कुंती था उन्हें कुंती पुत्र अर्थात कौन्तेय के नाम से जाना जाता था।
4) गुडाकेश
चौथा नाम है गुडाकेश। ये नाम उनके द्वारा गुडा राज्य पर युद्ध में जीत हासिल करने के बाद मिला।
5) कपिध्वज
अर्जुन के 12 नाम (Arjun ke 12 naam) में से पांचवा नाम है कपिध्वज। बजरंगबली हनुमान जी ने उनके साथ उनके रथ पर एक ध्वज के रूप में साथ रहने का आशीर्वाद दिया था। वो हमेशा अर्जुन के रथ पर विराजमान रहे इसी कारण उनका नाम कपिध्वज पड़ा।
6) किरीटी
छठा नाम है किरीटी। प्राचीन समय में अर्जुन ने दानवों को हराया था जिसके बाद इंद्रदेव ने उन्हें मुकुट पहनाया जिसे किरीट कहते थे। इस विजयी मुकुट के कारण उनका नाम किरीटी भी पड़ा।
7) भरत या भरतश्रेष्ट
अर्जुन के 12 नाम (Arjun ke 12 naam) में से सातवां नाम है भरत/भरतश्रेष्ट। वो भरतवशंज हैं इसलिए उनका नाम भरत भी पड़ा।
8) परन्तप
अर्जुन का नाम परन्तप भी था। ये नाम उन्हें इसलिए मिला क्योंकि अर्जुन इतने बलशाली और प्रतापी थे कि उनको देखकर शत्रुओं का ताप बढ़ जाता था।
9) पुरुषर्षभ
नौवां नाम है पुरुषर्षभ। अर्जुन को सभी पुरुषों में श्रेष्ठ माना जाता है इसलिए उन्हें पुरुषर्षभ नाम से भी पुकारा जाता है।
10) फाल्गुन
अर्जुन के 12 नाम (Arjun ke 12 naam) में से दसवां नाम है फाल्गुन। अर्जुन का जन्म इंद्र देव से मिले आशीर्वाद से हुआ था और इंद्र का समानान्तर नाम फाल्गुन यानी फाल्गुन माह भी है इसलिए अर्जुन को फाल्गुन नाम से भी जाना जाता है।
11) महाबाहु
ग्यारहवां नाम है महाबाहु। अर्जुन शारीरिक रूप से बहुत बलवान और लम्बे थे, अतः बहुत लम्बे और बलशाली हाथ होने के कारण उन्हें महाबाहु भी पुकारा जाता है।
12) सव्यसाची
अर्जुन के कितने नाम है (Arjun ke kitne naam hai) की सूची में बारहवां नाम है सव्यसाची। इस शब्द की परिभाषा कहें तो इसका अर्थ है वो व्यक्ति जो धनुष विद्या में निपुण हो। धनुर्विद्या में श्रेष्ठ होने के कारण उन्हें सव्यसाची नाम से भी जाना जाता है।
अर्जुन के नाम से जुड़ी एक रोचक कथा
जब सभी पांडव भाइयों को अज्ञातवास मिला था, तब वो सभी से खासकर कौरवों से अपनी पहचान छिपाना चाहते थे क्योंकि अगर वो पहचान लिए जाते तो उन्हें फिर से वनवास झेलना पड़ता। अर्जुन अप्सरा उर्वशी से मिले श्राप के कारण नपुंसक बनकर बृहन्नला के वेष में रह रहे थे और अपना अज्ञातवास काट रहे थे। इस अज्ञातवास के दौरान पांडव भाई विराट नगर में अलग अलग नाम और वेश भूषा में रह रहे थे।
विराट नगर पर दुर्योधन ने आक्रमण ककर दिया, उस वक्त विराट नगर की सहायता करने और कौरव सेना का सामना करने के लिए पांडव भाई आगे आए। उन्होंने अपने सभी अस्त्र एक शमी वृक्ष पर छिपा रखे थे, युद्ध शुरू होने से पहले अर्जुन उस वृक्ष में छिपाकर रखे अपने अस्त्र लेने जा रहे थे। अर्जुन को रथ पर जाते हुए कौरवों ने देख लिया और उन्हें एहसास होने लगा कि वो अर्जुन है। गुरु द्रोण ने भीष्म से कहा कि जो स्त्री अभी रथ में गई वो अर्जुन जैसी लग रही है।
जब अर्जुन उस वृक्ष के पास पहुंचे, तब अर्जुन ने राजकुमार उत्तर से शमी वृक्ष पर चढ़कर धनुष उतारने को कहा। राजकुमार पेड़ पर चढ़े ,वहां उन्हें एक कपड़े में लिपटे धनुष मिले। वो धनुष लेकर नीचे आए और जैसे ही उन्होंने वो कपड़ा हटाया सभी धनुषों से दिव्य कान्ति निकलती हुई प्रतीत हुई। राजकुमार उन अस्त्रों को देखकर चौंक गए। तब अर्जुन ने राजकुमार से कहा कि ये गांडीव धनुष है और ये अर्जुन का है। तब राजकुमार ने उत्सुकतापूर्वक पुछा, “ये अगर अर्जुन का धनुष है तो सभी पांडव पुत्र कहाँ है?”। तब उनके सवाल का जवाब देते हुए अर्जुन ने कहा “मैं अर्जुन हूँ”।
तब राजकुमार ने बृहन्नला से कहा अगर तुम अर्जुन हो तो मुझे अर्जुन के 12 नाम बताइए (Arjun ke 12 naam bataiye) तभी मैं तुम पर विश्वास कर सकता हूँ। तब पाण्डु पुत्र ने उन्हें विश्वास दिलाने के लिए अर्जुन के 12 नाम (Arjun ke 12 naam) बताए।
अर्जुन का महाभारत युद्ध में योगदान
अर्जुन ने युद्धभूमि में भीष्म पितामह, गुरु द्रोण और अन्य कई महारथियों को हराकर पांडवों को जीत दिलवाने में बहुत बड़ा योगदान दिया। अर्जुन के कारण ही श्रीकृष्ण पांडवों के साथ थे, जब महाभारत युद्ध होने वाला था दुर्योधन और अर्जुन दोनों ही कृष्ण को अपनी और लड़ने के लिए मनाने गए थे। जब दोनों वहां पहुंचे, तब कृष्ण जी सो रहे थे। अर्जुन उनके पैरों के पास बैठ गए, जैसे ही कृष्ण उठे उनकी नजर उनके पैरो के निकट प्रेम से बैठे अर्जुन पर पड़ी।
कृष्ण ने जब दोनों से आने का कारण पूछा तो दुर्योधन ने कहा वो वहां उनसे उनकी सेना लेने आये हैं जो उनकी तरफ से लड़ेगी और अर्जुन ने कृष्ण से कहा कि उन्हें सिर्फ कृष्ण सारथी के रूप में चाहिए। कृष्ण ने उनसे पूछा कि उन्होंने सेना न लेकर उन्हें क्यों माँगा क्योंकि वो तो युद्ध नहीं करेंगे; तो अर्जुन बोले “आप अकेले ही पूरी सेना का नाश कर सकते है तो फिर मैं सेना क्यों मांगू। बस आप मेरे साथ मेरे सारथी बनकर मेरा मार्गदर्शन करे।”
युद्ध में अपने सामने अपने परिजनों को देखकर अर्जुन घबरा गए थे और युद्ध से पीछे हटना चाहते थे तब उन्हें कर्म का ज्ञान देने के लिए श्री कृष्ण ने अपने भव्य रूप में आकर उनको भागवत गीता का ज्ञान दिया था।
18 दिन कौरवों और पांडवों के बीच युद्ध चला और इस दौरान युद्ध में महारथी अर्जुन ने अपने दिव्यास्त्रों से कई महारथियों जैसे कृतवर्मा, जयद्रथ, दीर्घायु, वीर श्रुतायुध आदि को मार गिराया। अर्जुन ने अपने पुत्र अभिमन्यु की हत्या का बदला अपने भाई भीम के साथ मिलकर लिया। सबसे भयानक युद्ध कर्ण और अर्जुन के बीच हुआ, युद्ध के दौरान एक दिन कर्ण के रथ का पहिया कीचड़ में फंस गया। कर्ण जैसे ही उसे निकालने रथ से नीचे उतरे, उसी वक्त कृष्ण जी के समझाने पर अर्जुन ने कर्ण का वध कर दिया। इसके बाद उन्होंने कौरव वंश के शेष पुत्रों का भी वध कर दिया।
आशा है की अब आप अर्जुन के कितने नाम थे (Arjun ke kitne naam the) जान गए होंगे जो उन्हें अलग अलग घटनाओं के समय और अलग अलग कुशलता के लिए मिले।
Frequently Asked Questions
Question: अर्जुन के कितने नाम है? Arjun ke kitne naam hai?
पूरे महाभारत में अर्जुन के 12 नाम (Arjun ke 12 naam) का वर्णन है जो इस प्रकार हैं – पार्थ, धनंजय, गुडाकेश, कौन्तेय, किरीटी, कपिध्वज, परन्तप, भारत/भरतश्रेष्ट, फाल्गुन, पुरुषर्षभ, सव्यसाची और महाबाहु।
Question: अर्जुन नाम का अर्थ क्या है? Arjun naam ka arth kya hai?
अर्जुन नाम का अर्थ है खुले दिमाग वाला, तेजस्वी, निष्पक्ष, राजकुमार, उज्जवल, पांडव कुमार।
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