विश्वभर में सनातन धर्म सबसे पुराना और शाश्वत धर्म है। आपको बता दें सनातन धर्म में बताई जाने वाली लगभग सभी बातों का वैज्ञानिक कारण होता है। इसी वजह से सनातन धर्म लगातार विकास कर रहा है। सनातन धर्म की शुरुआत हमारे ऋषि मुनियों ने की तथा सालों पहले जो हमारे ऋषि मुनियों ने अपने शास्त्रों और ग्रंथों के जरिए बताया वो आज के सन्दर्भ में भी सही साबित हो रहे है। सदियाँ बीत गई और आज भी उनकी कही हर बात बहुत महत्वपूर्ण है। हमारे महान ऋषि मुनियों ने शास्त्रों और ग्रंथों में 16 संस्कार के नाम और उनके महत्व का वर्णन किया है।
व्यास स्मृति में 16 संस्कारों का उल्लेख मिलता है। इन सभी 16 संस्कारों का क्रम जानकर आप हैरान हो जाएंगे कि इतने वर्ष पहले से हमारे पूर्वजों को इतनी सटीक जानकारी कैसे थी कि सोलह संस्कार कौन कौन से हैं। ऋषि मुनियों को पता था कि 16 संस्कार क्या है (16 sanskar kya hai) और उनका जीवन में क्या महत्व है।
पुराने जमाने में हिन्दू धर्म के अनुसार बच्चों को गुरुकुल में शिक्षा दी जाती थी। उस शिक्षा में हिन्दू धर्म में 16 संस्कार को शामिल किया जाता था जिससे उनका सार्वभौमिक विकास होता था। ये सभी 16 संस्कार हिन्दू धर्म की जड़ें हैं। आइये आज हम आपको उन्हीं प्रभावशाली 16 sanskar in hindi की जानकारी देते हैं।
16 संस्कार के नाम (16 Sanskar ke Naam in Hindi)
16 संस्कार के अंतर्गत मनुष्य के जीवन को गर्भ में आने से लेकर मृत्यु के उपरांत तक 16 कर्तव्यों में विभाजित किया जाता है। ये 16 संस्कार मनुष्य के स्वास्थ्य और व्यक्तित्व विकास की दृष्टि से महत्वपूर्ण होते हैं।
1) गर्भाधान संस्कार
16 संस्कार के नाम (16 sanskar ke naam) में से पहला संस्कार है गर्भाधान संस्कार। शास्त्रों के अनुसार पति और पत्नी के बीच प्रेम और सम्बन्ध सहमति से होना चाहिए। यदि कोई स्त्री शारीरिक रूप से स्वस्थ और प्रसन्न होगी तो उसके गर्भधारण करने पर जो शिशु पैदा होगा वो पूर्णत: स्वस्थ और तीक्ष्ण बुद्धि वाला होगा।
2) पुंसवन संस्कार
16 संस्कार के नाम (16 sanskar ke naam) में से दूसरा संस्कार है पुंसवन संस्कार। जब स्त्री गर्भ धारण करती है तो स्त्री को अपने खान पान का और मन का बहुत ध्यान रखना होता है। उनके लिए नियमित समय पर सात्विक और सेहतमंद भोजन करना जरूरी है। उनका भोजन और जीवन शैली कैसी होगी ये सब पुसंवन संस्कार में बताया गया है।
इस संस्कार को बनाने का उद्देश्य है कि माँ स्वस्थ बच्चे को जन्म दे। इसमें ऐसा भी बताया गया है कि यदि गर्भधारण उचित ग्रह और तिथि पर हो तो बच्चा स्वस्थ पैदा होता है।
3) सीमन्तोन्नयन संस्कार
16 संस्कार के नाम (16 sanskar ke naam) में तीसरा संस्कार है सीमन्तोन्नयन संस्कार। ये संस्कार जब गर्भवती महिला का गर्भ 6 महीने या 8 महीने का हो जाता है तब किया जाता है। ये दो महीने किसी भी गर्भवती महिला के लिए मुश्किल भरे होते हैं। इन दो महीनों में गर्भपात होने का बहुत खतरा होता है इसलिए इन दो महीनों में गर्भवती महिलाओं का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए। इस संस्कार के अंतर्गत इन महीनों में महिला के स्वाभाव के बारे में और उसे कैसे उठाना बैठना चाहिए और कैसे सोना चाहिए आदि बताया गया है।
इस बात को मेडिकल साइंस भी मानता है, इसलिए वर्तमान में सभी डॉक्टर्स महिलाओं को इन दिनों में ख़ास ध्यान देने को कहते है। सीमन्तोन्नयन संस्कार का मुख्य उद्देश्य गर्भ में पल रहे बच्चे का सम्पूर्ण विकास और माँ, बच्चे दोनों की सुरक्षा है।
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4) जातकर्म संस्कार
16 संस्कार के नाम (16 sanskar ke naam) में से चौथा संस्कार है जातकर्म संस्कार। ये संस्कार बच्चे के जन्म के बाद निभाया जाता है। इस संस्कार के अंतर्गत बच्चे के पैदा होने के बाद घी और शहद किसी बड़े या घर के बुजुर्ग के हाथों चटाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि ऐसा करने से बच्चे का दिमाग तेज होता है। इस संस्कार के बाद माँ बच्चे को स्तनपान कराती है। मेडिकल साइंस में भी साबित हो चुका है कि बच्चों के लिए माँ का दूध बहुत जरूरी और लाभकारी होता है।
5) नामकरण संस्कार
16 संस्कार के नाम (16 sanskar ke naam) में पांचवा संस्कार है नामकरण संस्कार। बच्चे के पैदा होने के समय और नक्षत्र के आधार पर कुंडली अनुसार उसका नामकरण किया जाता है। इस समय जो उसे नाम दिया जाता है वो आजीवन उसके साथ रहता है और वो उसी नाम से इस दुनिया में जाना जाता है।
6) निष्क्रमण संस्कार
16 संस्कार के नाम (16 sanskar ke naam) में से छठा संस्कार है निष्क्रमण संस्कार। ये संस्कार बच्चा जब चार मास का हो जाता है तब किया जाता है। इसमें बच्चे को सूर्य और चन्द्र के दर्शन कराए जाते है। इस संस्कार के बाद बच्चे को घर से बाहर के वातावरण में लाया जाता है।
7) अन्नप्राशन संस्कार
16 संस्कार के नाम (16 sanskar ke naam) मे से सातवाँ संस्कार है अन्नप्राशन संस्कार। इस संस्कार के बाद से माँ बच्चे को अपना दूध पिलाने के साथ साथ अन्य खाद्य पदार्थ भी खिलाना शुरू कर देती है जैसे सेरेलेक, केला, खिचड़ी आदि। मेडिकल साइंस भी सनातन धर्म की इस बात को मानता है कि बच्चा चार महीने का होने के बाद से सिर्फ दूध पर निर्भर नही रह सकता है, उसको दूसरे खाद्य पदार्थ देना भी जरूरी है। दूध के साथ उन्हें अन्य खाद्य पदार्थ भी मिलेंगे तो उनका सम्पूर्ण मानसिक और शारीरिक विकास सही तरीके से होगा।
8) चूड़ाकर्म संस्कार
16 संस्कार के नाम में आठवा संस्कार है चूड़ाकर्म संस्कार। इस संस्कार को कुछ लोग मुंडन संस्कार भी कहते हैं। इसमें बच्चे के जन्म के बाद पहली बार बाल काटे जाते है। ये संस्कार एक, तीन और पांच साल में कभी भी किया जा सकता है। मुंडन बच्चे के जन्म के बाद उसे हानिकारक कीटाणुओं से बचाने, उसके बौद्धिक विकास और स्वच्छता के लिए किया जाता है। जैसा कि मेडिकल साइंस भी मानता है कि स्वच्छता से बच्चे का विकास बहुत अच्छा और तीव गति से होता है।
9) विद्यारम्भ संस्कार
16 संस्कार के नाम (16 sanskar ke naam) में नौवां संस्कार है विद्यारम्भ संस्कार। इस संस्कार में बच्चों को शिक्षा से परिचित कराया जाता है। पुराने ज़माने में गुरुकुल में शिक्षा दी जाती थी और आज शिक्षा स्कूल और कॉलेजों में दी जाती है। पुराने ज़माने में बच्चों को गुरुकुल भेजने से पहले घर पर ही अक्षर बोध कराया जाता था ताकि जब वो शिक्षा के लिए गुरुकुल जाए तो उन्हें परेशानी न हो। घर के बड़े बच्चों को श्लोक, कथाएँ, धर्म, शास्त्रों के बारे में कहानियां सुनाया करते थे। पहले ज़माने में दी जाने वाली शिक्षा से उनका आध्यात्मिक विकास भी होता था। ये संस्कार बच्चे को शिक्षा और विज्ञान की और ले जाने का पहला कदम है।
10) कर्णभेद संस्कार
16 संस्कार के नाम (16 sanskar ke naam) में से दसवा संस्कार है कर्णभेद संस्कार। व्यक्ति के सभी अंग बेहद महत्वपूर्ण होते हैं और इस संस्कार का लक्ष्य कान की रक्षा होता है क्योकि इसे श्रवण द्वार माना जाता है। इस संस्कार में बालिकाओं के कान छेदे जाते है। ऐसा माना जाता है कि इससे उनकी सुनने की शक्ति बढ़ती है और कान से जुड़ी सभी व्याधियां दूर होती है।
11) यज्ञोपवीत संस्कार
16 संस्कार के नाम (16 sanskar ke naam) में ग्यारहवा संस्कार है यज्ञोपवीत संस्कार। इस संस्कार का उद्देश्य बच्चों को धर्म और अध्यात्म का ज्ञान देना है। इसमें लड़कों को जनेऊ धारण कराया जाता है। जनेऊ बच्चों के कान में लपेटकर धारण कराया जाता है। कान में लपेटने से कान के पॉइंट्स पर एक्युप्रेशर पड़ता है।
12) वेदारम्भ संस्कार
16 संस्कार के नाम (16 sanskar ke naam) में से बाहरवा संस्कार है विद्यारम्भ संस्कार। इस संस्कार से बच्चों को धर्म का ज्ञान दिया जाता है जो वैज्ञानिक होता है। इस ज्ञान को पाकर उसके जीवन का सम्पूर्ण विकास होता है।
13) केशांत संस्कार
16 संस्कार के नाम (16 sanskar ke naam) में से तेहरवा संस्कार है केशांत संस्कार। इसका उद्देश्य बच्चों को शिक्षा प्राप्त करने के बाद समाज में अपना स्थान बनाने के लिए प्रेरित करना होता है। केशांत संस्कार में शिष्य की दाढ़ी और सिर मुंडवाने की परंपरा है। शिष्य गुरु से शिक्षा प्राप्त करते समय ब्रह्मचर्य का पालन करता है और यह संस्कार उसके वयस्कता में प्रवेश का प्रतीक है।
ये संस्कार व्यक्ति को कर्म से जुड़ने के लिए प्रेरित करता है। इसे गृहस्थ आश्रम का पहला पड़ाव भी कह सकते है। इस संस्कार से बच्चे का आत्मविश्वास बढ़ाया जाता है और उसे समाज और कर्म के महत्व और उससे जुड़ी परेशानियों के बारे में अवगत कराया जाता है।
14) समावर्तन संस्कार
सोलह संस्कार (16 sanskar ke naam) से चौदहवां संस्कार है समावर्तन संस्कार। ये संस्कार पहले किया जाता था लेकिन अब इसे नहीं निभाया जाता। पुराने ज़माने में जब बच्चे की गुरुकुल में शिक्षा पूरी हो जाती थी तब ये संस्कार किया जाता था। इस संस्कार के बाद बच्चों को गृहस्थ जीवन शुरू करने योग्य माना जाता था।
15) विवाह संस्कार
16 sanskar में से पन्द्रहवा संस्कार है विवाह संस्कार। इस संस्कार का उद्देश्य पीढ़ी को आगे बढ़ाना है। इसमें व्यक्ति का विवाह कराया जाता है और उसे एक सामाजिक बंधन में बांध दिया जाता है ताकि वो अपने कर्मों को निभाने से पीछे न हटे।
16) अंत्येष्टि संस्कार
16 संस्कार के नाम (16 sanskar ke naam) में सबसे आखिर है अंत्येष्टि संस्कार। ये संस्कार तब किया जाता है जब व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है। व्यक्ति के मरने के बाद उसका नश्वर शरीर ख़राब होने लगता है और उसमे तुरंत ही बैक्टीरिया पैदा होने लग जाते है। ऐसे में अंत्येष्टि संस्कार करके उसका दाह संस्कार किया जाता है जिससे सभी बैक्टीरिया नष्ट हो जाते हैं । इस संस्कार का भी वैज्ञानिक कारण है जिसके बारे में सनातन धर्म में हमारे ऋषि मुनियों ने अपने ग्रंथो में वर्षों पहले ही बता दिया था।
सोलह संस्कार का महत्व और आवश्यकता
सोलह संस्कार बहुत महत्वपूर्ण है। इसमें बच्चे के गर्भ में आने से लेकर मृत्यु के बाद तक के सभी चरणों के बारे में बताया गया है। संस्कार वो सीढ़ी है जिस पर चलने वाला व्यक्ति जन्म से लेकर मृत्यु तक सुखी जीवन जीता है। ये संस्कार परिवार के साथ मनाए जाते हैं जिसमें परिवारजनों, रिश्तेदारों के साथ साथ विद्वान और ब्राह्मण भी अपना आशीर्वाद देने के लिए शामिल होते है।
विद्वानों के अनुसार जो व्यक्ति इन सभी संस्कारो में से किसी भी संस्कार का पालन नहीं करता है वो अटल सत्य मृत्यु के बाद मोक्ष प्राप्त नही कर पाता। अत: जितना हो सके सभी संस्कारो का सही तरीके से पालन करने की कोशिश करते रहना चाहिए।
उम्मीद है आपको आपके 16 sanskar kya hai के बारे में पता चल गया होगा।
Frequently Asked Questions
Question 1: सोलह संस्कार कौन कौन से हैं?
सनातन धर्म में बताए गए 16 संस्कारों का क्रम है – गर्भाधान संस्कार, पुंसवन संस्कार, सीमन्तोन्नयन संस्कार, जातकर्म संस्कार, नामकरण संस्कार, निष्क्रमण संस्कार, अन्नप्राशन संस्कार, चूड़ाकर्म संस्कार, विद्यारम्भ संस्कार, कर्णभेद संस्कार, यज्ञोपवीत संस्कार, विद्यारम्भ संस्कार, केशांत संस्कार, समावर्तन संस्कार, विवाह संस्कार एवं अंत्येष्टि संस्कार
Question 2: जन्म से पहले कितने संस्कार होते हैं?
जन्म से पहले तीन संस्कार होते हैं, जो इस प्रकार है – गर्भाधान संस्कार, पुंसवन संस्कार तथा सीमन्तोन्नयन संस्कार
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